दीपावली।
दीप खुशियों के जलाना
नित्य रौशन हो जमाना।
है बहुत जिद्दी अँधेरा
साथ दीपों के निभाना।
भूख से दम अब न निकले
दे क्षुधित को अन्न, दाना।
है विषैली जो हवा तो
ठान लो बिरवा उगाना।
सज चुका बाहर बहुत है
जागकर अंतर सजाना।
जो तिमिर उर का मिटे न
व्यर्थ दीवाली मनाना।
अनिल मिश्र प्रहरी।
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