Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दीपावली

 

 दीपावली।

दीप खुशियों के जलाना
नित्य रौशन हो जमाना।

है  बहुत  जिद्दी  अँधेरा
साथ दीपों के निभाना।

भूख से दम अब न निकले
दे क्षुधित  को  अन्न, दाना।

है विषैली जो हवा तो
ठान लो बिरवा उगाना।

सज चुका बाहर बहुत है
जागकर अंतर सजाना।

जो तिमिर उर का मिटे न
व्यर्थ दीवाली मनाना।

अनिल मिश्र प्रहरी।

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ