तकदीर।
उड़ने की थी चाहत तो पर न मिला।
तकदीर भी क्या चीज है
कभी बैरी, कभी अजीज है,
कभी अनचाहे सबकुछ पास
कभी घुटन और उपहास,
कहीं खिलता हुआ चमन
कभी आँधियों का दमन।
आँखों में थी नींद तो घर न मिला
उड़ने की थी चाहत तो पर न मिला।
जब सोये तो जगा दिया
जगे तो, दगा दिया,
मिहनत को न मिला अंजाम
हुनर को अधूरा दाम,
कभी भर दी झोली
सपनों की जली होली।
जब जीवन था दूभर तो अवसर न मिला
उड़ने की थी चाहत तो पर न मिला।
एक दीन बन जाता अमीर
आदमी यूँ ही इतना अधीर,
बिन आँखों के लोग चल लेते
उलझे जीवन का भी हल लेते,
रोना, हँसना सब तकदीर है
हर हाथ की अपनी लकीर है।
जमाने से फिर क्यों है शिकवा - गिला।
उड़ने की थी चाहत तो पर न मिला।
अनिल मिश्र प्रहरी।
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