Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बचपन

 

 

मिट्टी के टीलो सा था वो बचपन......
जहाँ हजारो सपनों के महल बनते और बिखरते थे......
जहाँ हर रोज एक नया सपना आँखो में लिये चलते थे हम....
जहाँ दोस्तो और अपनो से घिरी रहती थी जिन्दगी.......
जहाँ बडो के साये में महफूस थी जिन्दगी...........
न समय का ठिकाना था न अपना बस,
खशियों से खिल-खिलाती थी जिन्दगी...........
दर्द क्या होता है ये माँ ने कभी बताया नहीं और
पापा कहते थे कि खुशी का दूसरा नाम है जिन्दगी...........
हम सब बडा होना चाहते थे और
एक नयी पेंन्सिल के लिए भगवान से फरियाद करते थे.........
वो दोस्तो से नौंक झौंक और टीचर की मार भी ख्ुाशी देती थी, क्योंकि उदास चेहरे को खुशी में बदलने के लिए, माँ जो पास रहती थी..............
डर तो उस चिड़िया का नाम था,
जो टूटे हुए मकानो मे रहती थी..
माँ को बताने लायक हर बात होती थी और
भाई-बहनों से लड़ने की, कौई वजह नहीं होती थी..............
पैसे तो बस चाॅकलेट खरीदने के काम आते थे और
इससे ज्यादा अहमीयत तो पैसो की, पता ही नहीं थी..........
हम सब बड़े होकर कुछ बनना चाहते थे पर आज पता लगा कि हम तो बच्चा बनना चाहते थे........
लाखों सुनहरी यादों से भरा, बेफिकरी का था वो बचपन..........
मिट्टी के टीलो सा था वो बचपन......

 

 

 


?अंजली अग्रवाल

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