देखो कैसे बनठन के ये स्कूल चले.....
कंधो पर बोझ लिये भी मुस्कुराकर चले....
इनकी टूटी - भूटी गूड मोर्निंग भी टीचर को खुश कर जाती है...
बात जब होमवर्क की आये तो छोटी सी जीभ बाहर निकल आती है...
घड़ी-घड़ी लंच टाइम का इंतजार होता हंै....
आज तूने लंच में क्या लाया दोस्तो से यही सवाल होता है.....
गिरे जो तो आँसुओं की नदियाँ बह जाती हैं....
बढा जो हाथ कौई आगे तो हँसी की किलकारियाँ छूट जाती है......
मैदान में कुछ इस तरह दिखते हैं.....
मानों जैसे पानी में डेरो बदक चहकते हैं.....
जाते जाते भी टीचर से बाये करना नहीं भूलते हैं ये...
दिलों को जीतना जानते हैं यें.......
रास्तों पर लड़खड़ाते कदम चले....
देखो कैसे बनठन के ये स्कूल चले.....
अंजली अग्रवाल
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