नई पीढी और पुरानी पीढी के बीच विचारों के मतभेद की समस्याऔ काफी पुरानी हैं। नई पीढी सिफ॔ चलना चाँहती हैं। और इसके लिये वो गिरने को भी तैयार हैं। और पुरानी पीढी चाँहती हैं कि बच्चे। बिना गिरे ही उनके अनुभव से चलना सीख जायें।
दोनों ही पीढी अपनी-अपनी जगह सही हैं पर दोनो पीढी को सिफ॔ एक एक सत्य को स्वीेकार करना होगा।
पुरानी पीढी‚ इस चीज को समझे की अनुभव अपने होतें हैं किसी से उधार नहीं लिये जाते हैं। और बिना गिरे हम चलना तो सीख सकते हैं पर सम्भेलना नहीं। हम गिरेगें तभी तो उठने का हुनर सिखेंगें।
वहीं दूसरी और यह भी उतना ही सत्यस हैं कि किसी सीढी को हम कितना ही मॅाडन कर लें ‚ उसे इलेक्निस क बना ले‚ पर ऊपर तक पहुँचने के लिये शुरूआत तो पहली सीढी से ही करनी होगी और ये पहले सीढी ही हमारे बड़ो का वो अनुभव हैं जो उन्होपने उस सीढी में चढने के लिये न जाने कितने बार गिर कर कमाया हैं।
बस ये एक एक विचार दोनों पीढी के बीच के मतभेदों कों समाप्त कर सकता हैं।
याद हैं वो ॰॰॰॰॰॰
बचपन के दिन जब पापा सार्इकल चलाना सिखाया करतें थें। और पीछे से सीट को पकड़ लिया करते थे कि हम गिर न जायें। औंर हम चाँहतें कि हम खुद से चलाये पीछे मुड़ मुड़ कर पापा छोड़ो न प्लीिस कहते थें। औंर जिस दिन पापा सीट छोड़ देते थे उस दिन तो जैसे जीत हाँसिल हो गई हो सारे दोस्तोर को बतायेंगें कि आज तो पापा के बिने पकड़े सार्इकल चालाया।
और पता हैं उस दिन सबसे ज्यांदा खुशी पापा को हुई थी कि अब हमें सहारे की जरूरत नहीं।
अथार्त हमारे बड़े सिफ॔ तब तक ही हमें समझातें हैं जब तक की हम खुद से चलने लायक न हो जायें।
इसीलये अपने बड़ो को समझें। और इस जनरेशन गेप को हमेशा के लिये भर दें।
अंजली अग्रवाल
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