नारी
मैं एक नारी हूँ.....
बहुत अभागी हूँ.....
दर - दर भटकती हूँ..... कितनी ही जगह पैरो
से कुचली जाती हूँ..... तब कहीं इस दुनिया में आती हूँ.....
और आते ही पराया धन हो जाती हूँ.....
बड़ी मुश्किल से उड़ती हूँ..... कि
तभी किसी चील का शिकार बन जाती हूँ.....
इंसाफ माँगने जाती हूँ..... तो चरित्रहीन हो जाती हूँ.....
अपने ही माँ-बाप पर बोझ बन जाती हूँ.....
मैं मौखोटा पहनना चाँहती हूँ.....
मैं अपने आप को छुपाना चाँहती हूँ.....
मायके से ससुराल जाती हूँ.....
तो धन न लाने पर जलायी जाती हूँ.....
और बच गई तो लड़का पैदा करने की मशीन बन जाती हूँ.....
आज समझी मैं कि एक नारी दूसरी नारी को.....
जन्म क्यों नहीं देना चाँहती है।.....
आज समझी मैं कि........ मैं एक नारी हूँ.....
बहुत अभागी हूँ.....
अंजली अग्रवाल
LEAVE A REPLY