अब मैं भी स्कूल जाऊँगी......
अपने सपनो को पंख लगाऊँगी......
जिन्दगी को जिन्दगी बनाऊँगी......
तोड़ दूँगी में ये झूठी जनजीरों को.....
अब चली मैं उड़ने को......
क्या रोकेगा मुझे ये जमाना,
मैं वक्त को अपने साथ लेकर चली......
कह देना ऊपर वाले से..........
मैं अपनी तकदीर खुद लिखने चली....
होसलो से भरी मेरी नाव को किनारे तक मैं लगाऊँगी......
पराया धन को अब किस्से कहानी मै बनाऊँगी......
ढूँढ लिया है मैने अपने आशियाने को......
चली मै आसमान च्ूाने को......
बुझी हुयी आग थी मैं जिसे चिंगारी मिल गयी.....
अंधकार से भरी इस जिन्दगी को रोशनी मिल गयी.....
उठ गयी हुँ मैं ....
खुली आँखें से सपने देखने को....
अपनी कटी पतंग उड़ाने को.....
चली मै आसमान च्ूाने को......
अपने हौसलो की उडा़न भरने को......
अंजली अग्रवाल
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