Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुझे रोक लो माँ

 


मुझे रोक लो माँ,
मुझे रोक लो माँ,
मैं नहीं जीना चाँहती इस दुनिया में,
यह दुनिया हमारे लिये नहीं हैं,
यहाँ हमारे लिये सिर्फ अपमान और तिरस्कार हैं,
यहाँ पानी की नहीं, हमारे आसँुओं की नदियाँ बहती हैं,
यहाँ हर दूसरी आँखे मुझे गन्दी निगाहो से देखती है.....
यहाँ इंसान नहीं हैवान रहते है,
जो हर वक्त, हमें नौंचने के लिये तैयार रहते है,
सही कहते है लोग, कि इस देश का कानून भी अंधा हैं,
जो ऐसे हैवानो को केवल कुछ साल की सजा सुनाता हैं,
पर हमें, हमें तो जिन्दगी भर की सजा हो जाती है,
जिन्दगी जैसे नर्क से भी बत्तर हो जाती है.....
यहाँ कदम कदम पर लोग नजरे लगाये बैठे हैं,
डर लगता है मुझे घर से बाहर निकलने मैं,
डर लगता है मुझे अपनी बढती उम्र से,
डर लगता है मुझे सुन्दर दिखने से ,
मैं नहीं जीना चाँहती इस दुनियां मैं,
रोक लो माँ,
मुझे रोक लो,
मैं नहीं जीना चाँहती इस दुनिया में।

 

 


अंजली अग्रवाल

 

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