मुरझाये फूल हैं हम...
इस दुनिया में सबसे अकेले है हम..
याद नहीं की कब हँसे थे हम...
बस आँखो में नमी लिये चल रहें है हम...
पूरी जिन्दगी लगा दिया अपना घर बनाने मे...
और आज अपने ही घर में किरायेदार बन गये हैं हम....
मानो जैसे कटघेरे मे खड़े हो हम...
आज पता चला कि अपने लिये तो जीना ही भूल गये हम...
अजनबी सा लगता हैं अब ये जामाना...
किस्से कहें अपना ये फसाना....
अब तो हर पल इंतजार करती है ये बूढी आँखें ,मौत का...
जैसे पंक्षी इंतजार करते है बंसत ऋतु का..
बस हर पल यही सोचता है दिल...
मेरे बच्चों की जिन्दगी में कभी न आये ये दिन...
लड़खड़ाती जिन्दगी कहीं गुम हो रही है...
जिन्दगी में आज साथी की कमी महसूस हो रही है...
बुढ़ापा जिन्दगी का सबसे बड़ा संघर्ष हैं...
और साथी न हो तो बुढ़ापा इस जिन्दगी का सबसे बड़ा अिभिशाप है
खामोशी से दोस्ती हो गयी हैं...
जिन्दगी तो यादों में सिमट गयी हैं..
आज अपनों की कमी हो गयी हैं..
बुढापे की काली चादर उोड़े बैठें है हम..
बारिश की बून्दों का इंतजार करते है हम...
मुरझाये हुए फूल हैं हम...
अंजली अग्रवाल
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