Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जमीन मे रहना सीखो मेरे दोस्तो.....

 

 

जमीन मे रहना सीखो मेरे दोस्तो.....
उड़ती इस पतंग की डोर थामो मेरे दोस्तो......
किसके पीछे भाग रहे हो तुम
कभी मुडकर भी देखो मेरे दोस्तो.....
क्या पाया सोचने से पहले,
क्या खोया ये देखो मेरे दोस्तो.....
बिखरी इस जिन्दगी को, अब समेटो मेरे दोस्तो.....
ये जिन्दगी तुम्हारी है थोडा ,
अपने साथ भी वक्त बिताओं मेरे दोस्तो.....
आसमान की विशाल बाँहो को महसूस करो मेरे दोस्तो.....
पेड़ो की छाव में, रहकर देखो मेरे दोस्तो.....
इन ठण्डी हवाओं की सरसराहट सुनो मेरे दोस्तो......
कभी अपने आप मे भी खो कर देखो मेरे दोस्तो.....
तुम्हारे अन्दर एक गहरा समुन्दर है,
इसकी लहरो को उठने दो मेरे दोस्तो.....
जीते तो सब है, जीने की वजह तो खोजो मेरे दोस्तो.....
उडते उन पंक्षियों की भाँती कभी,
अपने लिये भी गा कर देखो मेरे दोस्तो.....
कभी अपने आप से भी तो मिलो मेरे दोस्तो.....
दौडती भागती इस भीड में खुद को मत खोओ मेरे दोस्तो.....
हाँ ये जीवन एक संधर्ष हैं पर
इस संधर्ष में अपने आप को जिन्दा रखो मेरे दोस्तो.....
जमीन मे रहना सीखो मेरे दोस्तो.....
उड़ती इस पतंग की डोर थामो मेरे दोस्तो......

 

 


अंजली अग्रवाल

 

 

 

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