जिन्दगी को संधर्ष का नाम तो देते है हम.....
पर लडने से पीछे हटते है हम..........
यूँ तो जिन्दगी एक दौड़ है कहते है हम.....
पर क्या सच में दौड़ते है हम...........
कभी तो जिन्दगी को खुली किताब बताते है हम....
पर क्या इस किताब के कुछ पन्ने भी लिखते हम.....
दुनिया से कहते है कि कौई समझ न पाया हमें....
पर क्या आज तक खुद को समझ पाये हैं हम....
शिकायतों का ढेर हैं हमारी जिन्दगी में....
जिसे कभी साफ नहीं करते हैं हम....
काश लेने से पहले देने का हुनर सीख लेते हम...
काश इस ढेर को साफ का लेते हम......
तो जिन्दगी को जिन्दगी कहते हम....
तो जिन्दगी को जिन्दगी कहते हम....
अंजली अग्रवाल
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