"लाख कोशिशें कीं तभी, छू पाया वो अर्श,
जलने वालों को दिखा, कब उसका संघर्ष !"
...हाल की घटनाओं से व्यथित होकर एक दोहा रचा है—
"डर के साए में मनें, क्यों अपने त्योहार;
आ भाई, चल तोड़ दें; नफ़रत की दीवार!"
—अंकित गुप्ता 'अंक'
"लाख कोशिशें कीं तभी, छू पाया वो अर्श,
जलने वालों को दिखा, कब उसका संघर्ष !"
...हाल की घटनाओं से व्यथित होकर एक दोहा रचा है—
"डर के साए में मनें, क्यों अपने त्योहार;
आ भाई, चल तोड़ दें; नफ़रत की दीवार!"
—अंकित गुप्ता 'अंक'
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