मातृभाषा स्नेह-आँचल है,
जो हमें अपने तले महफ़ूज़ रखता है!
बोल ये पहला हमारा है,
डूबते का ये सहारा है,
शेष सब हैं तुच्छ जुगनू-से
ये चमकता ध्रुव सितारा है;
मातृभाषा वो धरातल है-
बिन न जिसके सोच का हर वृक्ष टिकता है ।
मातृभाषा है न पिछड़ापन,
संस्कारों का यही दरपन,
ये हवा-सा शुद्ध कर देती-
देश का हर एक मन-आँगन;
मातृभाषा धार अविरल है-
देश का इतिहास जिसके साथ बहता है ।
दूसरों से जब जुड़ें संबंध,
क्या सगी माँ से मिटें संबंध?
कीजिए ये प्रण हमेशा ही-
मातृभाषा से रहें संबंध;
मातृभाषा सघन पीपल है-
छाँव में जिसकी हमारा कल ठहरता है ।
—अंकित गुप्ता 'अंक'
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