जिसकी आभा सारे जग में चारों ओर ही बिखरी है,
ऐसी अनुपम और अनोखी अपनी 'पीतल नगरी' है ।
गाँगन और रामगंगा का जिसके सिर पर हाथ रहा,
जंगे- आज़ादी में जिसका हर इक कण था साथ रहा,
ये सूफ़ी अम्बा की धरती बलिदानों से निखरी है ।
ऐसी अनुपम और अनोखी ...
यहाँ 'जिगर' के शेर गूँजते, ग़ज़लमयी है यहाँ फ़िज़ा;
हस्तशिल्प में इसने हर सू रचा सदा इतिहास नया,
देख यहाँ के हर चप्पे में अजब खनक सी पसरी है ।
ऐसी अनुपम और अनोखी ...
गंगा-जमुनी संस्कृति इसने तो विरासतन पाई है,
इसने सुरभि समस्त जगत में मेंथा की फैलाई है,
ये 'मंसूर', 'पियूष', 'तिवारी' से रत्नों की डगरी है ।
ऐसी अनुपम और अनोखी ...
—अंकित गुप्ता 'अंक '
[मंसूर- मंसूर उस्मानी, पियूष- पीयूष चावला, तिवारी- माहेश्वर तिवारी]
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