सबक कोरोना से
किसी ने देखा नहीं ऐसा मंजर सैकड़ो वर्षो से I
लाशो के ढेर ट्रको में भर के निकले हो II
नंना सा वायरस दिखता नहीं आँखों से I
चूर कर दिया अंहकार शक्तिशाली देशो का II
पैसे कमाने की होड़ में जो छोड़ निकलेथे घर-बार I
आज अपने परिवार को मिलने को लालायित है II
करोड़ो की योजनाएसाफ़ ना कर पाई गंगा यमुना को I
वो अपने आप साफ़ सुथरी होने लगी है II
सालो की योजनाए जो सुधार ना कर पाई दिल्ली की हवा I
हवा की गुणवत्ता अपने आप बेहतर होने लगी है II
जहां से बंद हो गए थे प्रकृतिके मनमोहक नज़ारे दिखने I
वो कई वर्षो बाद दिखने लगे है आज II
जालंधर से दिखता हिमालयकापहाड़ I
जंगली जीवो और पक्षियों का दिखता झुण्ड II
साफ़ सुन्दर नीला आसमान और रात को तारो की बढ़तीगिनती I
प्रकृति के स्वस्थ होने का अद्बुधउदाहरण है II
अब यह सिद्ध हो चूका है अपने स्वार्थ के लिए I
जितना शोषण किया प्रकृति का मानव ने II
ऐसा किसी और जीव ने किया नहीं अब तक I
कोरोना ने मजबूर किया लॉकडाउन लाने को II
लॉकडाउन ने किया प्रकृति की चिकित्सा का काम I
लोग लड़ते रहते है आपस में मंदिर - मस्जिद के लिए II
पर किसी को प्रकृति और बढ़ते प्रदूषण के लिए लड़ते देखा नहीं I
इसलिए हर किसी को सबक लेके बदलना होगा इस प्रकृति के अनुरूप II
लेखक
अंशुल रहेजा, बरवाला (हरियाणा)
मो:- ९५४०९५८६२४
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