अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा था कि, ‘वह एक गुण जो किसी एक मनुष्य को दूसरे से पृथक करता है, वह प्रतिभा, क्षमता, अच्छी शिक्षा या बौद्धिकता नहीं है, बल्कि वह है-किसी भी व्यक्ति का आत्म-अनुशासन।’’ यही वजह भी है कि, बाल्यावस्था में जो गुण सर्वप्रथम बालकों, विद्यार्थियों को समाज, परिवार या विद्यालयों मंें सिखाया जाता है, वह है, अनुशासन का सबक।’’ इसलिए हम कह सकते हैं कि, अनुशासन कोई पैदाइशी गुण नहीं बल्कि यह तो करत-करत अभ्यास की तर्ज पर विकसित होने वाला सद्गुण है। अनुशासन के अभाव मंें प्रतिभावान, क्षमतावान और उच्च शिक्षित लोग भी जिस पद अथवा मुकाम पर पहुंच सकते थे, वहां पहुंचने से वंचित रह जाते हैं। लिहाजा प्रत्येक मनुष्य को अपने व्यक्तित्व को आकर्षक एवम् प्रभावशाली बनाने के लिए अनुशासन को अपना प्रथम लक्ष्य बनाना चाहिए। आप आलस्य, कामचोरी, अकर्मण्यता एवं टाल-मटोल वाली प्रवृति पर केवल अनुशासन की दृढ़ता पर टिके रहकर ही काबू पा सकते हैं। अनुशासन को जीवन के सिद्धान्त की तरह सर्वोपरि रखकर ही हम सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकते हैं। केवल चरित्रवान, कत्र्तव्यनिष्ठ, जागरूक, ईमानदार और अनुशासित लोगों पर ही समाज भरोसा करता है, उनका अनुसरण करता है।
वर्तमान भौतिकतावादी जगत में प्रत्येक प्राणी अधिकाधिक सुख-सुविधाओं और वस्तुओं की प्राप्ति हेतु चेष्टारत्त प्रतीत होता है। हमारे अधिकांश युवा बाह्य जगत की चकाचैंध से प्रभावित तो हो जाते हैं लेकिन, अनुशासन के अभाव में उनमें भटकन तथा उत्तेजना बनी रहती है। वे यत्र-तत्र भटकते रहते हैं, सोचते भी बहुत हैं लेकिन कुसंग एवं आत्म-अनुशासन के अभाव में कुछ विशेष उपलब्धि हासिल नहीं कर पाते। भांति-भांति के सपने तो हमारे युवा देखते हैं, लेकिन अधिकत्तर युवा बिना संघर्ष, तैयारी किये, संदेह, दुविधा, असमंजस और भ्रम की अवस्था में अवसाद एवं तनावग्रस्त होकर प्रायः नशीले पदार्थों के सेवन की ओर उन्मुख हो जाते हैं। प्रायः ऐसे युवा अपनी नादानी और नकारात्मक सोच एवं लक्ष्य के अभाव में अपने आपको संकट मंे डालकर अपने परिवार जनों के लिए भी परेशानियां खड़ी कर देते हैं। इस वैज्ञानिक जगत में आज सारा विश्व निरन्तर नई-नई खोजों की ओर अग्रसर है तो निश्चय ही इसमें मेहनती, दृढ़ संकल्पित और अनुशासित लोगों का योगदान ही अधिक है।
हमारी युवा पीढ़ि को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि मात्र पुस्तकीय ज्ञान से आप विद्वान नहीं बन सकते हैं अपितु सद्गुणों को अपने जीवन में आचरण के द्वारा उतारकर ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं। मानव जीवन प्रायः सफलता-विफलता की सीढ़ियां चढ़ता-उतरता नज़र आता है लेकिन अनुशासनबद्ध व्यक्ति ही असम्भव को सम्भव में बदलकर रख देते हैं। सफलता प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हमारी युवा पीढ़ि सबसे पहले कठोर परिश्रम करने का प्रण ले और अपनी योग्यता-क्षमता को बढ़ाकर वांछित या तयशुदा लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आगे बढ़े। अनेक लक्ष्य रखने की प्रवृति से बचें। इसके लिए छोटी शुरूआत करें। अपने आपको व्यवस्थित एवं अनुशासित रखें। समय की पाबन्दी पर दृढ़तापूर्वक टिके रहें। जो सोच लिया या जो कह दिया, उस पर कायम रहें अर्थात् दुविधाग्रस्त होने से बचें। कठिन कार्यों को हमेशा अपनी प्राथमिकता में रखते हुए उन्हें पहले करें। सकारात्मक सोच रखते हुए अपने मित्रों और परिवारजनों की सलाह पर भी गौर करें। त्याग की आदत डालें, आलस्य से बचें और टाल-मटोल वाली प्रवृति त्यागें। कभी भी तुलना न करें और हमेशा आगे बढ़कर जिम्मेदारी संभालने का जज्बा प्रदर्शित करें। याद रखें, जिस भी कार्य या लक्ष्य को अपनाएं उसे अंजाम तक पहुंचाकर ही चैन की सांस लें। जीवन की सफलता मात्र व्यक्तिगत रूप से सुखी रहने में नहीं है वरन् हमारे साथ जुड़े प्रत्येक प्राणी को भी आनंदित रखने में है। मात्र भौतिकतावादी सफलता प्राप्त कर प्रसन्न न हों अपितु दूसरों के काम आने को भी अपना लक्ष्य बनाएं। हमारी युवा पीढ़ि जितना जल्दी समर्पण, सेवा भावना, त्याग, सदाचार, विनम्रता और धैर्य जैसे गुणों को अपना लेगी उतनी ही जल्दी उनके चरित्र एवम् व्यक्तित्व मंे निखार आयेगा। यह हमारी संस्कार परम्परा के भी अनुरूप है और यही ज्ञान एवम् मार्गदर्शन भारतीय संस्कृति मंें भी निहित है।
अनुज कुमार आचार्य
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