अनुज कुमार आचार्य
पंचायती राज प्रणाली, लोकतंत्र की सबसे मजबूत इकाई है और किसी भी राज्य में सबसे निचले स्तर पर विकास प्रक्रिया को सिरे चढ़ाने एवम् सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों एवं योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में इनका विशेष योगदान रहता है। हिमाचल प्रदेश में चूंकि अब पंचायती राज चुनावोें की कसरत पूरी हो चुकी है तो यह जरूरी हो जाता है कि पंचायती विकास का माडल कैसा होगा, क्या पंचायती राज संस्थाएं भ्रष्टाचार मुक्त ग्रामीण विकास की अवधारणा को सच साबित कर पाएंगी ? इस पर भी चर्चा करना जरूरी है।
इस बार भी पंचायतों के चुनाव बैलेट पेपर्स के जरिये करवाए गए जबकि नगर निकायों के चुनाव ई.वी.एम. से सम्पन्न हुए। रंग बिरंगी और पदनाम रहित बैलेट पर्चियों ने अशिक्षित, अर्धशिक्षित एवं बुजुर्गों को तो परेशान किया ही वहीं पढ़े-लिखे मतदाता भी भ्रमित देखे गए। कई बूथों पर मतदाताओं की पहचान करने हेतु कोई जहमत मतदान कर्मियों द्वारा नहीं उठाई गई जिसके कारण बोगस एवं जाली मतदान करवाने की खबरें भी सामने आईं। जातिवाद एवं क्षेत्रवाद की राजनीति का कार्ड खुलकर खेला गया, जिसके कारण कम पढ़े-लिखे अथवा अर्ध शिक्षित प्रत्याशी जीत गए और शिक्षित प्रत्याशियों वाली पंचायत बनाने का सपना देखने वाले मतदाता मायूस होकर रह गए। इसके अलावा शराब, रूपये, महंगे उपहारों से भी मतदाताओं को लुभाने की कोशिशें जारी रहीं। लिहाजा अधिकतर मतदाताओं का सुझाव था कि पंचायतों के चुनाव भी बैलेट पेपर्स के बजाए इलैक्ट्राॅनिक वोटिंग मशीनों द्वारा करवाए जाने चाहिए थे। फिर भी पूरे प्रदेश में लगभग 75 से 80 फीसदी तक मतदान हुआ और इस प्रक्रिया में महिला मतदाताओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
14वें वित्तायोग के माध्यम से राज्य की 3226 पंचायतों को विकास कार्यों के लिए तकरीबन प्रत्येक वर्ष 10 लाख रूपये मिलंेंगे। यह धनराशि सीधे पंचायतों को मिलेगी। वहीं राज्य वित्तायोग एवं प्रदेश पंचायती राज मंत्रालय द्वारा विकासात्मक गतिविधियों हेतु अलग से धनराशि जारी की जाएगी। पंचायती राज विभाग में पंचायत प्रधानों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की संख्या 547 तक पहुंच गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार को पंचायत प्रधानों, उप-प्रधानों एवं वार्ड सदस्यों द्वारा इतनी बड़ी धनराशि के दुरूपयोग एवम् भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए तत्काल कड़े उपायों की घोषणा करनी चाहिए। सरकारी स्तर पर कहा जा रहा है कि पंचायत प्रधान, विधायक की तरह काम करवाएंगे एवं विकास कार्यों को करवाने की जिम्मेवारी पंचायत सचिवों पर रहेगी। जाहिर है इससे पंचायत प्रधानों एवं पंचायत सचिवों की सांठ-गांठ से भ्रष्टाचार जारी रहने की संभावना तो बनी ही रहेगी। ऊपर से जातिगत समीकरणों से चुनकर आए अनुभवहीन और कम पढ़े-लिखे प्रतिनिधियों के कारण ग्रामीण विकास की प्रक्रिया धीमी रहने की संभावना भी बनी रहेगी। लिहाजा हरियाणा की तर्ज पर पंचायती राज कानून में संशोधन लाकर न्यूनतम शैक्षिक योग्यताएं भी प्रत्याशियों के चयन का आधार बनाए जाने की आवश्यकता है।
2010 से 2015 तक पंचायती राज के पांच वर्षों के कार्यकाल में अमूमन 70 लाख से 01 करोड़ रूपया पंचायतों को विकासात्मक कार्यों को करवाने हेतु उपलब्ध करवाया गया लेकिन अधिकतर मामलों में पाया गया कि 50 फीसदी से ज्यादा धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर प्रशासनिक अमले, पंचायत प्रधानों और प्रतिनिधियों की जेब में चली गई। ऊपर से तुर्रा यह कि इतना जानते, समझते-बूझते हुऐे भी नागरिकों ने शिक्षित, ईमानदार प्रत्याशियों को जातिवादी संकीर्ण सोच के चलते जीतने का मौका नहीं दिया। अमूमन प्रत्येक 5 वर्षों के बाद हमेशा एक नज़ारा देखने को मिलता है, वह है मतदाताओं की पंचायत चुनावों में सक्रियता जोकि नतीजे निकलने तक की बनी रहती है। बाद में लोग प्रत्याशियों के पास और पंचायत घरों तक भी जाने की जहमत नहीं उठाते हैं। यही वजह है कि अधिकतर बार पंचायतों के कोरम भी पूरे नहीं होते हैं। ग्रामीण जनता आम सभाओं और जलसा-इजलास में बुलाने के बाद भी नहीं पहुंचती हैं। लिहाजा पंचायत प्रतिनिधियों पर काम करवाने अथवा निगरानी का कोई दबाव या भय भी नहीं रहता है। वहीं पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा करवाए गए कार्यों की मात्रा, गुणवत्ता, धनराशि का सही उपयोग, हेराफेरी और भ्रष्टाचार को सरकारी स्तर पर अपने आप गोपनीय तरीके से छानबीन अथवा जांच करवाने की कोई कारगर व्यवस्था न होने के कारण भी पंचायत प्रतिनिधियों के होंसले बुलन्द रहते हैं। सरकार के पास विजिलेंस, सी.आई.डी. जैसी कई जांच एजेंसियां हैं, फिर भी आमतौर पर शिकायतकत्र्ताओं से ही यह अपेक्षा रखी जाती है कि वही सूबूत भी सौंपे। यही वजह भी है कि विकासात्मक कार्यों के लिए मिलने वाली धनराशि को जमकर लूटा जा रहा है।
सरकार को चाहिए कि पूरी पंचायत के मतदाताओं के मात्र 20 से 25 फीसदी वोट लेकर सरदारी संभालने वाले प्रधानों, उप-प्रधानों तथा वार्ड पंचों के कामों पर नज़र रखने के लिए मामूली अंतर से हारे हुए प्रत्याशियों को भी पंचायती राज संस्थाओं का अगले 5 वर्षों तक स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाए जाए, ताकि समान रूप से पूरी पंचायत में विकास कार्यों को ईमानदारी एवं पारदर्शी तरीके से पूरा करवाया जा सके और पंचायती कार्यों में होने वाले भ्रष्टाचार पर नुकेल कसी जा सके। इतना ही नहीं घोटाला एवं भ्रष्टाचार करने वाले पंचायत प्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अमले की कड़ी निगरानी की जाए एवं पंचायती कार्यों एवं फंड की नियमित अंतराल पर समीक्षा भी की जाए। बड़ी आबादी वाले गांवों को नगर पंचायतों का दर्जा प्रदान किया जाए एवं नगर पंचायतों को भी नगर परिषदों में तबदील कर दिया जाना चाहिए। ग्रामीण समाज को चाहिए कि वे स्वयं पंचायत द्वारा करवाए जाने वाले कार्यों की निगरानी करें और समय-समय पर पंचायतों की मीटिंग एवं आम सभाओं में भाग लेकर एक जागरूक मतदाता और नागरिक होने की पहचान साबित करंे।
अनुज कुमार आचार्य
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