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ऐतिहासिक मेलों को मिले सरकारी मान्यता

 

अनुज कुमार आचार्य
बैजनाथ
होली त्योहार के साथ जुड़ी हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कहानी में हिरण्य की बहन- होलिका की कथा से लगभग सभी भारतीय परिचित हैं। संदेश स्पष्ट है कि हमें पहले अपने अन्दर छिपी हुई बुराई एवम् बुरे विचारों को जलाकर दया, करूणा तथा प्रेम रंग को प्रमुखता देनी चाहिए। इसके अलावा फाल्गुन पूर्णिमा पर नई फसल पर किया जाने वाला यज्ञ भी होली की आग की लपटों के मध्य सम्पन्न किया जाता है, जिसमें गेहूं, चने तथा जौं इत्यादि नवान्न की बालियों को होम करके अग्नि की परिक्रमा करने का विधान है। इस प्रकार होली का त्योहार आपसी मन-मुटाव एवं राग-द्वेष भुलाकर आपस में गले मिलने का भी दिन है। यह त्योहार रंग, उल्लास और उमंग के साथ-साथ प्रेम तथा भाईचारा बढ़ाने का सन्देश भी देता है।
होली उत्सव की चर्चा हो तो जिला-कांगड़ा के पपरोला कस्बे के होली मेले की बात करना जरूरी हो जाता है। पपरोला होली मेले का इतिहास तकरीबन 150 वर्ष पुराना है। बाबा ज्ञान दास जी का संबंध इसी कस्बे से रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर मुख्य बाजार की सड़क के पीछे खूह बाज़ार वाली गली के निकट इनका मंदिर है, जहां इन्होंने समाधि ली थी। इसके बाद ओम ओम स्वामी जी ने पपरोला में अध्यात्म का अलख जगाया था। पंडित लक्ष्मण दास शर्मा और पंडित खेमराज शर्मा का परिवार इनकी श्रद्धा भावना से सेवा करता रहा और इनके निर्देशानुसार सन् 1878 में अर्थात् आज से 117 वर्ष पूर्व होली मेले तथा झांकियां निकालने की जो परम्परा शर्मा परिवार ने शुरू की थी उसे बाद की पीढ़ियों ने भी जारी रखा है। होली मेले की शुरूआत सबसे पहले बाबा ज्ञान दास मंदिर में पूजा-अर्चना तथा झंडा चढ़ाने की रस्म के बाद शोभायात्रा के साथ होती है। इस बार 03 मार्च, 2015 को झंडा चढ़ाने की रस्म के साथ मेले की भव्य शुरूआत होगी और 06 मार्च, 2015 (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) के दिन शाम को होलिका दहन के साथ मेले का समापन होगा। मेले के आखिरी दिन, पिछले 117 वर्षों से शर्मा परिवार द्वारा अविराम, लगातार नियमित रूप से काली माता की भव्य झांकी निकाली जा रही है, जो भक्तों, श्रद्धालुओं एवम् महिलाओं के बीच भारी आकर्षण का केन्द्र रहती है। इस बार की होली मेला कमेटी के अध्यक्ष श्री जाॅनी खान स्वयं पिछले 11 वर्षों से लगातार माता काली का रूप धारण कर झांकी में शामिल हो रहे हैं। मेले के दौरान बच्चों एवम् महिलाओं से जुड़ी कई प्रतियोगिताओं का आयोजन भी करवाया जाता है। मेले का सर्वाधिक आकर्षण बाजार के अलग-अलग नुक्कड़ों के दुकानदारों द्वारा निकाली जाने वाली आकर्षक एवं मनमोहक झांकियां रहती हैं। चार दिनों तक रोजाना शाम के समय निकाली जाने वाली झांकियों का चित्रण, रूप रेखा, साज-सज्जा, विषय वस्तु और प्रस्तुतीकरण हर बार नया, निराला और अद्भुत होने के कारण हजारों की संख्या में मेले में आने वाले दर्शकों के बीच में ये झांकियां चर्चा, आकर्षण तथा कौतुहल का विषय रहती हैं। प्रशासन टेªफिक तथा सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा बखूबी संभालता है। होली मेला कमेटी द्वारा सर्वश्रेष्ठ झांकी का पुरूस्कार भी दिया जाता है।
पपरोला शहर के इतिहास की चर्चा करें तो विद्वानों के मतानुसार पपरोला का प्राचीन नाम पापरोला था। संस्कृत में पाप $ रोला, ‘‘पापं रोलयति इति’’ अर्थात् इसे पापों के नष्ट करने वाला स्थान कहा जाता है जो कि बाद मंे अपभ्रंश होकर पपरोला नाम से प्रसिद्ध हुआ। जनश्रुतियों के अनुसार, स्वयं बाबा बैजनाथ शिवशंकर ने इस स्थान का नामकरण पार्वतीपुर किया था। बैजनाथ, भोले भक्त रावण की तपोस्थली मानी जाती है और रावण की सोने की लंका के दहन की घटना से सभी परिचित ही हैं। बैजनाथ शहर में जहां सुनार की एक भी दुकान नहीं है तो वहीं पपरोला शहर मंे दर्जनों सुनारों की दुकानें हैं। पपरोला, बैजनाथ उपमंडल का प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र भी है। पपरोला के निकट, बुहली कोठी नामक स्थान के पास बहने वाली ‘पुन्न’ खड्ड का शास्त्रोक्त नाम ‘पुण्या’ है जहां धार्मिक त्योहारों के दौरान पवित्र स्नान का उल्लेख मिलता है।
इस प्रकार से देखा जाए तो बैजनाथ के प्रवेशद्वार पपरोला का ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व बेहद प्राचीन है। पपरोला शहर, राजकीय स्नात्तकोत्तर आयुर्वेदिक महाविद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय, बैजनाथ फार्मेसी, सत्यनारायाण मंदिर, राम मंदिर, खूह बाजार और निकटवर्ती बिनवा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए प्रसिद्ध है। पपरोला होली मेले की भव्यता एवम् प्राचीनता के बावजूद प्रशासन और सरकार द्वारा इस मेले को सरकारी संरक्षण मंे ना लेना, इस मेले के साथ-साथ यहां के नागरिकों से अन्याय ही माना जाना चाहिए। यहां के सभी नागरिकों की मांग है कि पपरोला के होली मेले को तत्काल जिला स्तरीय अथवा राज्य स्तरीय होली महोत्सव का दर्जा प्रदान कर इसे सरकारी मान्यता दी जाए। पपरोला के साथ लगते ठारू गांव के खुले स्थान पर सांयकाल को सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन करवाया जा सकता है। इस प्रकार से पपरोला होली मेले का आकर्षण तो बढ़ेगा ही वहीं पर्यटन एवम् व्यावसायिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा। क्षेत्र के लोगों को आर्थिक लाभ पहुंचेगा तो वहीं मेले की भव्यता और प्राचीनता का भी सम्मान बहाल होगा।

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