Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गरिमामय युवा नेतृत्व का निर्माण

 

 

भारतवर्ष युवाओं का देश है और युवाओं मंे असीम शक्ति होती है, लिहाजा यह अत्यन्त आवश्यक है कि हमारे युवाओं में विद्यमान ताकत से न केवल उन्हें परिचित करवाया जाए अपितु उनकी शक्ति को रचनात्मक एवं राष्ट्र उत्थान में नियोजित करने के प्रयास भी हों। कुछ स्वार्थी लोग अपने फायदे के लिए हमारी युवाशक्ति को बहला फुसलाकर उन्हें पथभ्रष्ट करने से भी नहीं चूकते हंै। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि बाल्यावस्था से ही बालकों को सुसंस्कारित बनाकर उनमें आध्यात्मिक एवं सृजनात्मक शक्ति को जागृत करके उन्हें समाज तथा राष्ट्रहित में कार्यशील होने के लिए प्रेरित किया जाए। यह किसी एक व्यक्ति का दायित्व न होकर हमारे देश के समस्त माता-पिताओं, गुरूओं एव गुणीजनों की जिम्मेवारी है कि वे इस बात को यकीनी बनाएं की हमारी युवापीढ़ी पथभ्रष्ट न होने पाए।
युवाओं को यह भी समझना होगा कि मनुष्य का वर्तमान जीवन भौतिकतावाद के कारण भागदौड़ से भरा हुआ है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है हमारी महत्वाकांक्षाओं में वृद्धि। हमारी इच्छाओं की पूर्ति के चक्कर में कई बार हमारा मन खिन्न, उचाट और उद्विग्न हो जाता है। ऐसे समय में हमें मानसिक शांति और मनोबल बढ़ाने के लिए आस्तिकता पर भरोसा रखते हुए परमपिता परमात्मा की शरणागति होकर अपने अंदर सकारात्मक भावना का संचार करते रहना चाहिये। वैसे भी मानवीय जीवन में प्रायः नकारात्मक और सकारात्मक भावनाओं के बीच द्वन्द्व की स्थिति बनी रहती है। सकारात्मक सोच जहां हमें उत्थान की ओर ले जाती है तो वहीं नकारात्मक सोच ईष्र्या, द्वेष भावना के साथ अधोगति की तरफ धकेलती है। अतएव यह भी जरूरी है कि हम अपना बहुमूल्य समय तथा ऊर्जा दूसरों के प्रति ईष्र्या, डाह और जलन मंे व्यर्थ न गवाएं बल्कि सदैव, सकारात्मक रहकर अपने आपको इतना व्यस्त कर लें की दूसरों की निंदा इत्यादि के लिए हमारे पास फालतू समय ही न बचे।
हमारी युवा पीढ़ी को चाहिये कि वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूर्णतया एक लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करे और समय रहते उन्हें यह भी तय कर लेना चाहिए कि उनके जीवन का ध्येय क्या होगा ? इसके अलावा स्वयं पर भरोसा रखना ही सफलता की कुंजी माना गया है। इसलिए पूर्ण आत्मविश्वास से ओतप्रोत होकर अपने कार्यों को अंजाम तक पहुंचाएं। केवल अपनी उन्नति के पीछे न पड़े रहकर गांव-समाज की निस्वार्थ सेवा हेतु भी समय निकालें। हमेशा आत्मकल्याण के साथ-साथ समाज एवं राष्ट्रकल्याण हेतु प्रयत्नशील रहें। वर्तमान समय में जीवन पथ पर आगे बढ़ने और सफलता पाने के लिए मनुष्य में एक अनिवार्य गुण और होना चाहिए और वह गुण है उसका व्यवहार कुशल होना। खासकर निजी क्षेत्र में लोगों को उनकी शैक्षणिक योग्यताओं के साथ साथ व्यवहार कुशलता के पैमाने पर भी जांचा परखा जाता है।
वर्तमान जीवन भाग दौड़ से परिपूर्ण है और मनुष्य हर पल तनाव, चिंता, परेशानियों के कारण मुस्कुराना ही भूल बैठा है। इसलिए मुस्कुराहट और अपने जीवन में खुशियां लाईये क्योंकि मुस्कुराहट से जीवन निखरता भी है और हमारा व्यक्तित्व चमकता भी है। अपने जीवन को नित्यप्रति महोत्सव बनाने के लिए और अपने जीवन की बगीया को सजाने संवारने के लिए हमें अपने अंदर ज्ञानरूपी ज्योति से उजाला करने की आवश्यकता हमेशा रहती है। स्वाध्याय, सत्संग से हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित करके अपने साथ-साथ अपने परिवार और समाज का भी भला एवं उत्थान करने में अपना बहुमूल्य योगदान कर सकते हैं। इसके साथ ही, जिस तरह से आज हमारे युवाआंे को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी नौकरियों के पीछे भागना पड़ रहा है ऐसी परिस्थितियों में कई बार वे हार मानकर बैठ जाते हैं और अपने आप को निराशा की गर्त में धकेल देते हैं। ऐसे हालात में निरन्तर प्रयत्न करते रहना, हौंसला बनाए रखना और जीतने की उम्मीदें जिंदा रखना ही उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने में मददगार साबित होता है। हमेशा याद रखें, कामयाबी आपको आपके ‘कम्फर्ट जोन‘ के बाहर जाकर अर्थात् घर की दहलीज छोड़कर निकल जाने पर ही हासिल होती है।

 

 

 

अनुज कुमार आचार्

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