Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गौरवमय देश का आधार है नारी ?

 

भारतीय धर्म दर्शन, ज्ञान और संस्कृति में नारी महिमा और सामाजिक कुरूतियों के विरूद्ध महिलाओं के योगदान को रेखांकित किया गया है। चाहे वीरता का क्षेत्र हो या विद्वता का प्रत्येक जगह वीरांगनाओं और विदुषियों ने अपनी अप्रतिम छाप छोड़ी है। रानी लक्ष्मीबाई, रानी चिनम्मा, बेगम हजरत महल, कैप्टन लक्ष्मी सहगल हांे या प्राचीन काल में लोपामुद्रा, मैत्रेयी, गार्गी और अपाला जैसी विदुषियां, सबने अपने ज्ञान से भारत की गौरवगाथा को चार चांद लगाएं हैं। भारतीय नारी गुणों की खान है कोमलता, स्नेह, दया, प्रेम सहिष्णुता और सहनशीतला से भरपूर महिलाएं आज जीवन के सभी क्षेत्रों मंे पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन भी कर रही हैं। शिक्षा के प्रचार प्रसार से अब तस्वीर कुछ बदली तो है परन्तु आंकड़े कहते हैं ंकि आज भी आधी भारतीय आबादी के हितों को सुरक्षित बनाने के लिए मीलों लम्बे सफर को तय करना बाकी है। महिलाआंे को न्याय दिलाने और उनके लिए समान अधिकारों की व्यवस्था करके नारी सशक्तिकरण की अवधारणा को पुख्ता बनाने की जरूरत है।
हमारी संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व इतना कम है कि दक्षिण सूडान और सऊदी अरब जैसे देश भी इस मामले में हमसे आगे हैं। संसद में महिलाआंे के प्रतिनिधित्व के मामले में विश्व के 141 देशों में भारत का स्थान 103 वां है जबकि एशिया में 18 देशों में हमारी रेंकिंग 13वीं हैं। वहीं वैश्विक औसत में महिलाओं का संसदीय परम्परा में हिस्सेदारी 22.4 प्रतिशत है तो भारत में यह प्रतिशत मात्र 12 फीसदी ही है। भारतीय संघ के राज्यों में कुल विधायकांे की संख्या 4,120 है और 31 दिसम्बर 2014 की स्थिति के मुताबिक मात्र 360 महिला विधायक ही चुनाव में जीतकर विधान सभाआंे में सुशोभित हो पाई थीं जबकि राज्य सरकारों में कुल 568 मंत्रियों में 39 महिलाएं ही मंत्री पद पर आसीन थीं। जब तक महिलाओं को टिकट बंटवारे में पूरा प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाएगा तब तक मंत्रीमण्डल में उनकी उचित भागीदारी भी सुनिश्चित नहीं हो पायेगी।
न्यूयार्क स्थित ‘इंटरनेशनल कमीशन आॅन फाइनांसिंग ग्लोबल एजुकेशन आपर्चुनिटी’ के ताजा शोध के अनुसार भारत में महिला साक्षरता की स्थिति पड़ोसी देशों के मुकाबले बेहद खराब है प्राइमरी शिक्षा में पांचवी कक्षा तक साक्षर महिलाओं का अनुपात हमारे देश में 48 फीसदी है जबकि नेपाल में यह 92,पाकिस्तान में 74 और बांग्लादेश में 54 फीसदी है। 1951 में भारत की कुल साक्षरता दर 18.33 फीसदी थी, जिसमें 27.16 फीसदी पुरूष और 8.86 फीसदी महिलाआंे साक्षर थीं। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस मामले में प्रगति हुई है और कुल 74.06 फीसदी साक्षरता दर में 82.14 पुरूष और 65.46 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थीं अर्थात् महिला साक्षरता को लेकर अभी भी लम्बा सफ़र तय करना पड़ेगा। ‘पापुलेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के देशों में भारत में वर्ष 2004 से 2014 के बीच लैंगिक आधार पर गर्भपात के कुल 8,51,403 मामले दर्ज किये गए थे और इस मामले में भारत पहले स्थान पर है। 1901 में 1000 पुरूषों पर 972 महिलाएं थी तो 2011 की जनगणना के अनुसार यह आंकड़ा गिरकर 940 पर आ गया है। वैसे तो भारत में कानूनन लड़कियों की विवाह योग्य आयु कम से कम 18 वर्ष निर्धारित की गई है तथापि वर्तमान में महिलाओं की औसत आयु 19.5 वर्ष है, जो कहीं न कहीं लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा को भी प्रभावित करती है।
20वीं आर्थिक जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में 5 करोड़ 85 लाख उद्यम हैं जिनमें मात्र 14 फीसदी व्यवसायों की बागडोर महिलाओं के हाथ मंे है। महिलाआंे द्वारा संचालित उद्यमों में से ज्यादातर व्यवसाय छोटे स्तर के हैं और 79 फीसदी स्वविŸापोषित हंै। यदि महिलाओं के प्रति अपराधों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो एनसीआरबी- 2014 के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध के आंकडे़ बताते है कि प्रति घंटे ऐसे 26 अपराध यानि हर दो मिनट में एक श्किायत दर्ज होती है। पिछले एक दशक में 22 लाख 40 हजार महिलाओं के प्रति अपराधों की शिकायतें दर्ज की गईं। एनसीआरबी के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि वर्ष 2015 में हमारे देश में बलात्कार के 34051 मामले दर्ज़ किए गए थे जिनमें 33098 मामलों में इस घृणित अपराध को अंजाम देने वाले पीड़िता के परिचित अथवा रिश्तेदार थे। सख्त कानून बनाने के बावजूद 2004 से 2014 के बीच स्त्रियों के विरूद्ध अपराधों में ज्यादतर मामले हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार, अपहरण, लूटपाट, दहेज हत्या, उत्पीडन, पति द्वारा क्रूरता अपमान और स्त्रियों पर हमले के दर्ज किए जाते हैं। ब्यूरों आॅफ पुलिस रिसर्च एंड़ डिवेल्पमंेट, यू.एन वूमन रिर्पोट और सी.एच.आर.आई के साथ-साथ एन.सी.आर.बी. के आंकडे़ बताते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध बड़ी तेजी से बढे़ हंैं। हमारे देश में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या मात्र 6.11 प्रतिशत ही है। भारत में कुल पुलिस बल की आधिकारिक संख्या 17 लाख 22 हजार 786 हैं उसमें से महिला पुलिस कर्मियों की संख्या मात्र 1 लाख 5 हजार 325 है। विकसित देशों में कुल पुलिस बल में 25 प्रतिशत महिलाएं हैं तो वैश्विक 9 फीसदी है और भारत में यह औसत 6.11 प्रतिशत ही है। महिला पुलिस कर्मचारियों वाले शीर्ष केन्द्र शासित एवं राज्यों में 14.16 प्रतिशत के साथ चण्डीगढ़ पुलिस पहले स्थान पर है तो 11.07 फीसदी के साथ हिमाचल प्रदेश चैथे नम्बर तथा राज्यों में तमिलनाडू के बाद दूसरे स्थान पर है। पुलिस विभाग में पुरूष वर्चस्व के चलते अभी इस दिशा में व्यापक सुधार किए जाने की जरूरत है।
भारत वर्ष में महिलाओं की आबादी का लगभग 48 प्रतिशत है लेकिन महिला केन्द्रित योजनाओं पर कुल बजट का बहुत ही कम हिस्सा खर्च किया जाता है। 2011 में जहां यह बजट आबंटन मात्र 6.22 प्रतिशत था तो 2016 में घटकर 4.50 प्रतिशत रह गया है। केन्द्र सरकार ने चैदहवें विŸा आयोग की सिफारिश के मुताबिक, केन्द्रीय राजस्व में राज्यों का हिस्सा बढ़ा दिया है और सामाजिक कल्याण पर अपना खर्च घटा दिया है, अब यह राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे महिला केन्द्रित योजनाओं को आगे बढ़ाएं। महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत मार्च 2008 तक महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वयंसिद्धा कार्यक्रम चलाया जा रहा था। इस स्कीम के तहत 650 ब्लाॅकों में 10.02 लाख लाभार्थियों के 69,774 स्वयं सहायता समूह गठित किए जा चुके थे वस्तुतः महिला सशक्तिकरण का अर्थ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महिलाओं को अपने आपको संगठित करने की क्षमता बढ़ती और सुदृढ़ होती है। उनमें लिंग, सामाजिक आर्थिक स्थिति और परिवार एवं समाज में भूमिका के आधार पर आत्मनिर्भरता बढ़ती है। महिला सशक्तिकरण की राह में अभी भी कई दुश्वारियां हैं और आंकड़ों की बानगी तो जाहिर कर रही है कि जब तक लैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा, बलात्कार, यौनहिंसा, असमानता, वेश्यावृŸिा, मानव तस्करी और महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर काबू नहीं पाया जाता तब तक महिलाओं को सशक्त नहीं बनाया जा सकता है। यदि समाज को जगाना, जागृत और आगे बढ़ाना है तो महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण और रक्षा जरूरी है। संसद द्वारा बनाए गए कई कानूनों को धरातल पर लागू करके ही हम भारत की आधी आबादी को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से सशक्त बना सकते हैं।

 

 


अनुज कुमार आचार्य

 

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