Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन दिशा बदलने वाले सुभाषित

 

 

प्रायः विद्यालयों के भीतर-बाहर की दीवारों पर कम शब्दों में लिखी जीवन उपयोगी सुन्दर बातें हमारा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं और एक बारगी तो हमारा हृदय परिवर्तन हो जाता है और हम तदनुसार आचरण करने के लिए प्रेरित हो उठते हैं। यही वजह भी है कि इन बातों को अनमोल वचन अथवा सुभाषित भी कहते हैं। यह बातें जीवन रूपी सागर में हमारे पूर्वजों, बड़े-बुजुर्गों के अनुभवों का सार होती हंै। जो कम शब्दों में हमारा पथ प्रदर्शन कर देती हैं। इन पर आचरण करके हम अपनी जीवन दिशा को भी बदल सकते है। बुद्धिमŸाा से परिपूर्ण इन अनमोल वचनों का प्रतिदिन स्मरण करना इनका श्रवण-मनन करना और पढ़ना उतना ही आवश्यक है जैसे प्रतिदिन स्नान करना और अपनी दिनचर्या की शुरूआत करना।
कहते हैं कि, अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। इस अकेली सूक्ति में गुरूमहिमा का विशद् वर्णन कर दिया गया है। लिहाज़ा समस्त अध्ययनरŸा विद्यार्थियों एवं युवाओं को सर्वप्रथम गुरू भक्ति एवं गुरू पर आस्था का संकल्प लेना चाहिए ताकि समर्थ गुरू की उन पर कृपा बनी रहे। हमारी वाणी न केवल मीठी होनी चाहिए अपितु हमारे कर्म भी सुन्दर होने चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि हताशा हमारे निकट भी फटकनी नहीं चाहिए क्योंकि उत्साह हमेशा मनुष्य को कर्म करने के लिए प्रेरित करता रहता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। मेहनत, लगन, हिम्मत से भरपूर नेक इरादों वाले लोग अपनी कल्पनाओं को साकार कर दूसरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। जिनको अपनी क्षमताओं और शक्तियों पर अटूट विश्वास होता है वे कभी भी असफलता का मुख नहीं देखते हैं।
हमारे शास्त्रों में और अनेक महापुरूषों ने शताब्दियों से विद्याग्रहण एवं ज्ञान प्राप्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि ज्ञानेन हीनाः पशुभिः सामानाः अर्थात् ज्ञान विहीन मनुष्य पशु के समान है। उसमें भी अल्पविद्या और अल्प ज्ञान को विषतुल्य भयंकर माना गया है। जोसेफ एडिशन के अनुसार, अध्ययन हमें आनंद प्रदान करता है और योग्य बनाकर अलंकृत करता है। मस्तिष्क की उन्नति के लिए अध्ययन उतना ही आवश्यक है जितना शरीर के लिए व्यायाम करना। यदि हम पुस्तकों, पत्र पत्रिकाओं की ही चर्चा करें तो पठन-पाठन को सबसे सस्ता मनोरंजन माना गया है और पुस्तकों की तुलना एक सुन्दर बागीचे से की गई है। यदि आप महान व्यक्यिों की रूचियों को जानने का प्रयत्न करेंगे तो आप पायेंगे की उनमें सुन्दर ज्ञानवर्धक पुस्तकों को पढ़ने के प्रति जबर्दस्त रूचि पाई जाती है। कहा भी गया है कि, किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं, सुसंस्कृत बनाती हैं। ज्ञानार्जन से मनुष्य का विवेक जागृत होता है और कल्पनाशीलता उसकी मिठास को बढ़ाती है। विवेक जहां मानवीय जीवन को सुरक्षित रखता है तो वहीं कल्पनाशीलता जीवन की मधुरता को बढ़ाती है। पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक आंका गया है क्योंकि पुस्तकें अन्तःकरण को उज्जवल करती हैं। पुस्तकंे ही हमारी सच्ची मित्र और शुभचिन्तक होती हैं।
मनुष्य जीवन में हम निठल्ले बैठे नहीं रह सकते हैं इसलिए हमें प्रतिक्षण कर्मशील बने रहना पड़ता है। जब हम जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं तो हर समय मात्र कामयाबी ही हमारा स्वागत नहीं करती है, अनेकों बार असफलताओं-विफलताओं का सामना भी हमें करना पड़ता है। कष्ट और विपŸिायां हमंे सीख देती हैं और जो इनका सामना साहस के साथ करते हैं सफलता उनके कदम चूमती है। इसके लिए जरूरी यह भी है कि हम सबसे पहले अपने ऊपर विजय प्राप्त करें। हमेशा अपने हौंसले बुलन्द रखें। आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवŸाा पर निर्भर करती है। महात्मा बुद्ध के अनुसार, पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती है लेकिन मानव के सद्गुणों की महक सब ओर फैल जाती है। लिहाज़ा हमेशा मधुर वचनों का श्रवण, मनन और अध्ययन करते रहें तथा उन पर आचरण कर अपने उच्च कोटि के चरित्र का निर्माण करें। जीवन में सफल हों - सफल कहलवाएं।

 

 

 

अनुज कुमार आचार्य

 

 

 

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