अनुज कुमार आचार्य
हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डाॅ. यशवंत सिंह परमार ने एक बार कहा था कि, ‘‘कृषि, बागवानी एवं वन्य संसाधनों का विवेकसम्मत उपयोग, उनका प्रबन्धन एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए इन संसाधनों की स्थिरता ही हमारी भविष्य की आर्थिक सम्पन्नता का आधार होगी।’’ जिस प्रकार से हमारी वर्तमान युवा पीढ़ि कृषि कार्यों से विमुख होती जा रही है यह एक चिंतनीय विषय बन चुका है। वहीं, यदि हम केन्द्र सरकार विशेषकर हिमाचल प्रदेश सरकार के कृषि, बागवानी एवं पशुपालन विभागों की योजनाओं एवं कार्यक्रमों की पड़ताल करें तो पता चलता है कि सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु करोड़ों रूपया खर्च किया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2015-16 के दौरान भी हिमाचल प्रदेश सरकार ने 1031 करोड़ रूपयों का बजट आबंटन किया था। हिमाचल प्रदेश मंे कृषि, बागवानी एवं पशुपालन को बढ़ावा मिले तथा रोजगार के नवीन अवसर निकलें इसी सोच को लेकर प्रदेश सरकारें सदैव प्रयासरत्त रही हैं। इसी उदेश्य से 01 नवम्बर 1978 को पालमपुर मंे हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी, तो 01 दिसम्बर 1985 को नौणी (सोलन) में प्रदेश सरकार द्वारा डाॅ. वाई.एस. परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय की शुरूआत की गई थी। आज प्रदेश में इन दो विश्वविद्यालयों के अलावा पालमपुर में ही पशु चिकित्सा महाविद्यालय भी है। इसके अलावा 12 किसान विज्ञान केन्द्रों मंे तैनात कृषि एवं बागवानी विशेषज्ञों द्वारा किसानों को कई तरह की सुविधाएं एवं परामर्श उपलब्ध करवाया जा रहा है।
कृषि, बागवानी एवं पशुपालन जैसे क्षेत्र प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ रहे हैं और आज भी बहुसंख्यक हिमाचली नागरिक इन क्षेत्रों में अपनी आजीविका कमा रहे हैं। हाल ही में 08 दिसम्बर, 2015 को हिमाचल प्रदेश में भी भारत सरकार द्वारा ‘‘मेरा गांव-मेरा गौरव’’ योजना की शुरूआत की गई है। इस योजना के तहत हिमाचल सहित भारतवर्ष में लगभग 20 हजार कृषि, बागवानी वैज्ञानिक ‘‘राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा योजना’’ के तहत किसानों से संवाद करेंगे और जमीन को प्रयोगशाला से जोड़ने की प्रक्रिया को मजबूत बनाकर किसानों को तकनीकी तौर-तरीकों का प्रशिक्षण भी देंगे। इसके अलावा केन्द्रीय स्तर पर भी कृषि सम्बन्धी विभिन्न कल्याणकारी जानकारियों के लिए ‘‘किसानों का पोर्टल’’ कार्यरत्त है।
भारतवर्ष के अन्य राज्यों के मुकाबले में कृषि, बागवानी एवं पशुपालन के क्षेत्र मंे हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अनेकों कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है। जिसके अन्र्तगत बाढ़ नियंत्रण कार्य, गुणात्मक बीज उन्नतिकरण एवं वितरण, पैदावार विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना, कृषि ऋण, रेशम का उत्पादन, मशरूम, मत्स्य, दुग्ध प्रसंस्करण योजनाओं द्वारा आत्मनिर्भरता एवं स्वरोजगार प्राप्त करना, किसान क्रेडिट कार्ड, विभिन्न कृषि सम्बन्धी कार्यों हेतु अनुदान पर ऋण योजना, हिम स्वावलम्बन योजना के तहत एस.सी./एस.टी. व्यक्तियों को कृषि कार्यों हेतु ट्रांसपोर्ट सेवा शुरू करने के लिए विशेष ऋण सुविधाएं उपलब्ध हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार अपने कृषि, बागवानी एवं पशुपालन मंत्रालयों द्वारा डाॅ. वाई.एस. परमार किसान स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत पाॅलीहाऊस खेती को बढ़ावा दे रही है। राजीव गांधी सूक्ष्म सिंचाई योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान, जैविक खेती को बढ़ावा, मिश्रित खादों पर उपदान, बागवानों को उच्च गुणवत्ता के पौधों का वितरण, मण्डी मध्यस्थता योजना, ओलावृष्टि से बचाव हेतु उपदान, नए पशु औषधालयों की स्थापना एवं पुरानों को स्तरोन्नत करना, भेड़ पालकों और दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु कई वित्तीय सहायता योजनाएं चल रही हैं।
जाहिर सी बात है, जब प्रदेश सरकार करोड़ों रूपया कृषि, बागवानी एवं पशु पालन के क्षेत्र में खर्च रही है तो इसके नतीजे भी अच्छे ही आने चाहिए। प्रायः इन विभागों द्वारा समय-समय पर विभिन्न मेलों इत्यादि में प्रदर्शनियां लगाकर भी सामान्य नागरिकों को जागरूक करने की कोशिशें की जा रही हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कृषि, बागवानी एवं पशुपालन विभागों से जुड़ी योजनाओं का विश्लेषण करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी स्तर पर आम आदमी के लिए दैनिक जीवनोपयोगी अनेकों खाद्य वस्तुओं के उत्पादन एवं उसमें आत्मनिर्भरता पाने के साथ-साथ स्वरोजगार द्वारा आजीविका प्राप्त कर अपनी एवं प्रदेश की आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने हेतु अनेकों मंच उपलब्ध हैं। इतना जरूर है कि सरकार इन स्कीमों, कार्यक्रमों का व्यापक प्रचार-प्रसार करे और ज्यादा से ज्यादा बेरोजगार युवाओं को इन्हें अपनाने हेतु प्रेरित करे।
अनुज कुमार आचार्य
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