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महिला सुरक्षा को मिले सर्वोच्च प्राथमिकता

 

 

अनुज कुमार आचार्य
पिछले कुछ महीनों की विभिन्न अखबारों की सुर्खियों पर नज़र दौड़ाएं तो आप पाएंगे की हिमाचल प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। हत्या, बलात्कार, दहेज हत्याएं, यौन शोषण एवम् महिला उत्पीडन के आंकड़ों मंे वृद्धि हुई है। हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग के ‘‘क्राइम अगेंस्ट वूमन’’ के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 के दौरान प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हत्या के 44 मामले, बलात्कार के 60, बच्चा चोरी के 243, यौन शोषण के 519, महिला हिंसा के 325, चेन स्नेचिंग के 5 ओर छेड़खानी के 76 मामले दर्ज किए गए हैं। बच्चियांे/युवतियों के प्रति दुव्र्यवहार, यौन शोषण और बलात्कार के मामलों के 2-3 समाचार प्रतिदिन अखबारों में प्रकाशित होने से हिमाचल प्रदेश में महिलाओं के प्रति बढ़ती आपराधिक घटनाओं से देवभूमि शर्मसार हो रही है।
एक समय था जब प्राचीन भारत में जीवन के सभी पक्षों में महिलाओं को पुरूषों के मुकाबले बराबरी का दर्जा हासिल था। व्याकरणाचार्य पतंजलि एवम् कात्यायन के अनुसार वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षित करने के अलावा परिपक्व होने पर अपनी पसन्द के पुरूष से विवाह करने का उल्लेख मिलता है। गार्गी, मैत्रयी, याज्ञवल्का आदि विदुषियों का उल्लेख ऋग्वेद एवम् उपनिषदों में आता है। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान राजा राम मोहनराय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और ज्योतिबा फुले जैसे समाज सुधारकों ने महिला उत्थान के लिए काम किया था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान बड़ी संख्या में भीखा जी कामा, डाॅ. ऐनी बेसेन्ट, विजय लक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अरूणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, सरोजनी नायडू और कैप्टन लक्ष्मी सहगल जैसी वीरांगनाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। आज़ादी के बाद जैसे-जैसे शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ बड़ी तेजी से महिला शिक्षा पर पुनः ध्यान केन्द्रित किया गया। आज शिक्षा, खेलों, राजनीति, मीडिया, अध्यापन, चिकित्सा एवम् अभियांत्रिकी सहित अमूमन जीवन के सभी क्षेत्रों मंें युवा शिक्षित बेटियां अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं, तो वहीं हमारे इसी तथाकथित सभ्य समाज में कुछ लोग भेडिए का रूप धरकर महिलाओं के सम्मान और अस्मिता के साथ खिलवाड़ करके उनकी जिंदगियों में जहर घोल रहे हैं। ‘‘नेशनल क्राइम ब्यूरो’’ की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2013 मंें देश भर मंे बलात्कार के 33,707 मामले दर्ज किये गए। दहेज हत्या से जुड़े 8083 मामले दर्ज किए गए, जबकि महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के अपराधों को लेकर दर्ज मामलों की कुल संख्या 3,09,546 थी। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी 70 फीसदी जमीन पर पुरूषों का स्वामित्व है।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में इसे विडम्बना ही समझा जाना चाहिए कि भारतवर्ष के सभी राज्य में 4120 विधायकों मंे केवल 360 महिला विधायक हैं। जबकि विभिन्न राज्य सरकारों में 568 मंत्रियों मंे केवल 39 महिलाएं मंत्री हैं। अभी भी टिकट बंटवारे में महिलाओं को हमारी विधायकाओं में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है। ऐसे मंे महिला सशक्तिकरण के दावे लगभग बेमानी ही लगते हैं। हिमाचल प्रदेश मंे लड़कियों की शिक्षा को आज परिवारों एवम् प्रदेश सरकार द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है और उनकी आर्थिक सुरक्षा, रोजगार, पोषण, स्वास्थ्य, शौचालय सुविधाओं (स्कूलों एवं घरों में) चिकित्सा और प्रसव सुविधाओं को लेकर काफी प्रगति देखने को मिल रही है। हिमाचल प्रदेश मंें ग्रामीण आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने मंे महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। महिलाओं ने बड़े पैमान पर स्वयं सहायता समूह गठित कर अपनी आर्थिकी को भी मजबूत किया है। पंयायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों मंे महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया है ताकि महिला कल्याण एवम् सशक्तिकरण को बढ़ावा मिले, मजबूती मिले। हिमाचल प्रदेश की कुल 3243 पंचायतों मंे से 1634 पंचायतों मंे महिला प्रधान हैं जो कि आधी आबादी का 50.54 प्रतिशत है।
महिला सशक्तिकरण पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और प्रायः इस मुद्दे पर चर्चा भी होती रहती है। लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त नहीं बनाया जाता, उनकी सुरक्षा को यकीनी नहीं बनाया जाता, तब तक डरी-सहमी, अपने दायरे में सिमटी आधी आबादी की सक्रिय भागीदारी के बिना एक सुदृढ़, विकसित और कल्याणकारी राज्य की कल्पना करना बेमानी होगी। पारिवारिक, सामाजिक एवम् विद्यालयों में बालिकाओं/महिलाओं के आदर-सम्मान के प्रति बच्चों/नवयुवकों को जागरूक करने की जरूरत है। संस्कारों और चरित्र निर्माण पर बल दिये जाने की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि महिला पुलिस थानों/चैकियों की संख्या बढ़ाए। साथ ही प्रदेश के सभी थानों/चैकियों में महिला पुलिस कर्मचारियों की संख्या बढ़ाए। ज्यादा जनसंख्या वाले गांवों/कस्बों के अन्दर भी पुलिस गश्त को नियमित रूटीन का हिस्सा बनाए जाए। पंचायतों की मीटिंग और आम सभाओं मंे महिला पुलिस अधिकारियों की भागीदारी को सुनिश्चित बनाया जाए ताकि महिला पुलिस अफसर, ग्राम सभाओं की मीटिंग में आने वाली महिलाओं से वार्तालाप कर सकें और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करें। महिला शिक्षक कर्मचारियों को भी महिला अधिकारों की जागरूकता बढ़ाने हेतु इस काम में नियोजित किया जा सकता है। निश्चित रूप से इन उपायों से ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता एवम् उनके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करने में सहायता मिलेगी। इसके अलावा सख्त कानूनों, त्वरित न्यायिक प्रणाली द्वारा दोषियों को कठोर एवम् अनुकरणीय दण्ड द्वारा महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर रोक लगाई जा सकती है।

 

 

अनुज कुमार आचार्य

 

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