अनुज कुमार आचार्य
भारत जैसे देश में जहां की अधिकांश आबादी शाकाहारी है वहां मशरूम उत्पादन पोषण की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है। हमारे यहां मशरूम का प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। भारत में मशरूम उत्पादकों के दो समूह हैं, एक जो केवल मौसम में ही इसकी खेती करते हैं तथा दूसरे जो पूरा वर्ष मशरूम उगाते हैं। भारत में व्यावसायिक रूप से तीन प्रकार की मशरूम उगाई जाती है। बटन खुम्ब, ढींगरी खुम्ब, तथा धान पुआला या पैडीस्ट्रा खुम्ब। तीनों प्रकार की खुम्ब/ मशरूम को किसी भी हवादार कमरे मंे, शेड में आसानी से उगाया जा सकता है। पैड़ीस्ट्रा मशरूम की खेती मुख्यतः समुद्री किनारे वाले क्षेत्रों में की जाती है। यह गहरे रंग की तथा बहुत स्वादिष्ट होती है। आदिकाल से मानव मशरूम का प्रयोग करता आ रहा है, ऐसा वैज्ञानिकों का मत है। प्राकृतिक रूप से यह जंगलों व मैदानों मंे बरसात के मौसम में लगता है। वैज्ञानिकों ने नये-नये प्रयोग कर इसके उत्पादन को घर पर ही सुलभ बना दिया है। वैज्ञानिकों व इतिहासकारों के अनुसार प्राचीनकाल में अतिथि वर्ग को मशरूम परोसना एक बड़ी बात समझी जाती थी।
मशरूम की दो किस्में होती हैं, एक खाने वाली तथा दूसरी जहरीली। खाने वाली मशरूम पौष्टिक और प्रोटीन युक्त सफेद खुम्ब मानी जाती है, जिसका वैज्ञानिक नाम है-‘एगैरिक्स बाइस्पोरस’। मशरूम की एक अपनी अलग ही मनमोहक खुशबूु होती है, जिसके कारण इसे खाने में ज्यादा पसन्द किया जाता है। यह इसी बात का परिचायक है कि इसका उत्पादन अब दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इसमें विटामिन तथा खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में होने के कारण कई बीमारियों का निदान भी हो जाता है-जैसे मधुमेह, हृदय रोगियों, लीवर और कैंसर रोगियों के लिए मशरूम वरदान स्वरूप है।
हमारे अधिकतर कृषि वैज्ञानिक ऐसी फसलों की खोज में है जो कि आसानी से उगाई जा सकें और मनुष्य को एक सन्तुलित आहार भी दें सकें। मशरूम पौष्टिक तत्वों से भरपूर है और इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे हम घर में कमरों के अन्दर भी उगा सकते हैं। तापमान एवम् अन्य प्रकार के वातावरण को कृत्रिम साधनों से नियन्त्रित किया जा सकता है और इस फसल को वर्ष भर उगाया जा सकता है। जिस देश के 80 प्रतिशत लोगों की जीविका का साधन ही खेती हो उस देश के किसान इसे एक लघु उद्योग के रूप में भी बड़ी आसानी से अपना सकते हैं।
मशरूम की खेती पहाड़ी स्थानों पर ज्यादा अच्छे ढंग से की जा सकती है। दो हजार मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर तो एक वर्ष मंे मशरूम की पांच फसलें तैयार की जा सकती हैं जबकि एक हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में साल में दो फसलें उगाई जा सकती हैं और मैदानी स्थानों पर ठण्ड के मौसम में केवल एक बार फसल उगाई जा सकती है। मशरूम उत्पादन के लिए सर्वप्रथम लम्बी विधि वाली खाद तैयार की जीती है, जिसे-गेंहू का भूसा, अमोनिया सल्फेट, सुपर फास्फेट, युरेट आफ पोटाश, यूरिया, चोकर, जिप्सम, बी.एच.सी. 5 प्रतिशत, धूल और शीरा मिलाकर तैयार किया जाता है। खाद बनाने के बाद, खाद को 25 अंश सैंटीग्रेट तक ठण्डा करने के बाद लकड़ी की पेटियों में, जिनकी गहराई 6 इंच और लम्बाई चैड़ाई 3 फुट × 2 फुट तक हो, में भर दिया जाता है। अब यह पेटियां बीज मिलाने के लिए तैयार हो जाती हैं। एक वर्ग मी. पेटी की खाद के लिए मशरूम के बीज की एक बोतल लगती है। बोतल से बीज को निकाल कर खाद में फैला दिया जाता है, फिर उसे समतल किया जाता है। इन पेटियों के ऊपर अखबार बिछा दिया जाता है और दिन में 2-3 बार पानी का छिड़काव किया जाता है ताकि अखबार गीला रहे व खाद न सूखे। जिस कमरे में पेटियों को रखा जाता है, उसका तापमान 24-25 अंश सेंटीग्रेट के अन्दर रखा जाता है और उस कमरे की नमी लगभग 90 प्रतिशत तक रखी जाती है। तीन सप्ताह के भीतर बीज फैलकर खाद की सतह पर सफेद रूई की तरह आ जाता है।
तैयार हुए मशरूम को खुलने से पहले ही हल्के से घुमाकर तोड़ दिया जाता है। तोड़ते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि कम से कम मिट्टी मशरूम को लगे। मशरूम जितनी साफ-सुथरी होगी उसकी कीमत भी उतनी ज्यादा मिलेगी। मशरूम को तोड़ने के बाद मिट्टी में जो गड्ढ़ा रह जाता है, उसे रखी हुई मिट्टी से भर देते हैं। जिस कमरे में मशरूम की खेती की जाती है उसे पूरी तरह से साफ रखा जाता है।
मशरूम का बीज ‘माइक्रोलौजी व प्लांट-पैथोलौजी विभाग बागवानी विश्वविद्यालय सोलन’ से निर्धारित सरकारी मूल्य पर प्रति बोतल खरीदा जा सकता है। शुरू-शुरू में मशरूम उत्पादन 20 और 25 टेª पर आरम्भ किया जा सकता है। लम्बी विधि से एक टेª पर 4-5 माह में, 3 या 4 किलोग्राम मशरूम पैदा किया जा सकता है और यह मापदंड ‘कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर’ के मशरूम विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित किया गया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने बेरोजगार युवाओं को इस क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिए आसान किस्तों पर ऋण देने की व्यवस्था भी की है। जिस प्रकार से वर्तमान समय में युवाओं में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है उसके दृष्टिगत यदि हमारी शिक्षित युवा पीढ़ि वैज्ञानिक तरीके से मशरूम उत्पादन करे तो सफलतापूर्वक आत्म निर्भर होकर अपने साथ-साथ प्रदेश की आर्थिकी को भी सुदृढ़ बना सकती है।
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