अनुज कुमार आचार्य
किसी भी देश की भाषा उसकी संस्कृति की विरासत की संवाहक होती है। हमारा भारत देश भाषाओं की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध देश है। यहां अनेक भाषाएं प्रयोग में लाई जाती हैं और हमारी सभी भाषाएं साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध भी हैं। आज न केवल हिन्दी हमारे देश को एकता के सूत्र मंें पिरोने वाली भाषा बन चुकी है अपितु विश्व भाषा बनने की ओर भी अग्रसर है। हिन्दी चूंकि सहज एवं सरल भाषा है और इसमें अन्य भाषाओं के शब्दों को अपना लेने की अद्भुत क्षमता विद्यमान है इसलिए यह सर्वग्राह्य है। 14 सितम्बर, 1949 को संविधान समिति की हिन्दी सभा ने एकमत से गहन विचार-विमर्श एवं चिंतन के बाद निर्णय लिया था कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। अतएव 14 सितम्बर, 1949 को भारतीय संविधान में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से सम्पूर्ण देश एवं विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों, मिशनों में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष ‘‘हिन्दी दिवस’’ के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि, ‘‘हिन्दी के बिना राष्ट्र गूंगा है। भाषायी संकीर्णता कभी भी हमारे व्यवहार और विचारों की अभिव्यक्ति मंें बाधक नहीं होनी चाहिए।’’ आजादी के बाद के शुरूआती वर्षों में भले ही दक्षिण भारतीय राज्यों मंें हिन्दी का विरोध हुआ था लेकिन जैसे-जैसे राष्ट्र आगे बढ़ता गया, सम्पूर्ण देश के युवा सशस्त्र सेनाओं, अर्ध सैन्य बलों एवं केन्द्रीय नौकरियों मंे शामिल होते गए और हिन्दी फिल्मों की दीवानगी जैसे-जैसे भारवर्ष में बढ़ती गई, इसके साथ ही हिन्दी भाषा का भी न केवल प्रचार-प्रसार हुआ अपितु देश की सीमाओं से निकल यह सारे विश्व मंे छा गई। हिन्दी के महत्व को समझते हुए संभवत बहुत पहले ही कविराज रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि, ‘‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं परन्तु हिन्दी महानदी है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हिन्दी केे बिना हमारा काम नहीं चल सकता है।’’ आज इन्हीं गुरूदेव की अनूठी रचना भारत का राष्ट्रगान बनकर हिन्दी की गौरव गाथा का गुणगान कर रही है।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से लेकर आज तक हिन्दी ने अपने उत्थान एवं विकास में काफी प्रगति की है। हिन्दी में वार्तालाप करने में लोग अब गर्व महसूस करते हैं। उनमें स्वाभिमान की भावना का संचार होता है। आजादी से पहले एवं बाद में भी समय-समय पर हमारे विद्वानों, मनीषियों, कविओं और लेखकों ने हिन्दी में अद्वितीय रचनाएं प्रस्तुत की हैं और विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार मंे अपनी महत्ती भूमिका निभाई है। मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। हिन्दी हमारे स्वाभिमान एवं अस्मिता की भाषा है। हिन्दी भाषा सहजता, सुगमता, सुबोधता के कारण देश की ही नहीं वरन् विश्व भाषा बनने की ओर अगसर है। विदशों में आज ‘‘इंडिया स्टडी सेंटर’’ स्थापित किये जा चुके हैं ताकि वहां के नागरिक इस भाषा से परिचित होकर भारत से जुड़ सकें। पिछले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की विदेश यात्राओं के दौरान प्रवासी भारतीयों के सम्मेलनों में हिन्दी की भव्यता, उपयोगिता एवं प्रयोग बढ़-चढ़ कर देखने को मिलता रहा है। हिन्दी भाषा आज महज संवाद का माध्यम भर नहीं रह गई है बल्कि यह हमारी पहचान बन चुकी है। बदलते समाज एवं व्यापक होती जरूरतों के बीच हिन्दी ने तेजी से अपने पंख पसारे हैं जो कि हिन्दी भाषा के विकास के लिए शुभ संकेत हैं। ‘कम्प्यूटर एवं स्मार्ट फोन’ में हिन्दी के एप्पलिकेशन आ जाने से अब हिन्दी टंकण बच्चों, महिलाओं एवं युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। वैश्वीकरण की आवश्यकताओं एवं भारतीय संस्कृति को समझने के लिए आज भारतीयता वैश्विक ब्राण्ड बन चुकी है। आज भारत मंे लगभग सभी नौकरियों मंे हिन्दी भाषा मंे परीक्षाएं देने, साक्षात्कार देने का प्रचलन बढ़ गया है।
भाषा, भावनाओं की वाहक होती है और भाषा ही हमारी विचार अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी है। किसी भी राष्ट्र की संस्कृति और भाषा उसकी अस्मिता एवं अखण्डता की द्योतक है। लिहाजा हिन्दी भाषा ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो भारतीय जनमानस को एक-दूसरे से जोड़ने की अद्भुत क्षमता रखती है। ‘‘हिन्दी दिवस’’ मनाने की सार्थकता तभी साकार होगी जब हम सभी भारतवासी क्षेत्रीयता एवं प्रांतीयता की भावना से ऊपर उठकर राष्ट्रभाषा के उत्थान, विकास एवं प्रचार-प्रसार में अपना पूर्ण सहयोग और योगदान करें एवं अधिकाधिक कार्य हिन्दी भाषा में ही करें।
किसी कवि ने क्या खूब लिखा है:-
सुन्दर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
यूं तो भारत देश में कई भाषाएं हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिन्दी है ये हिन्दी।।
अनुज कुमार आचार्य
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY