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सड़क दुर्घटना बीमा मुआवजों में विलम्ब

 

 

अनुज कुमार आचार्य

 

 


भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की, ‘‘भारत मंें सड़क दुर्घटना-2015’’ की रिर्पोट के अनुसार, वर्ष 2015 मंे भारत में 5 लाख 1423 सड़क दुर्घटनाओं में 01 लाख 46 हजार 135 लोगों की जानें गईं और 5 लाख 247 लोग घायल हुए थे। वहीं 2014 में कुल 4 लाख 43 हजार दुर्घटनाओं में 01 लाख 37 हजार 423 मौतें हुईं थीं और 4 लाख 69 हजार 882 लोग घायल हुए थे। भारत में दुर्घटनाओं में यह वृद्धि दर 2.5 प्रतिशत है तो वहीं 5 प्रतिशत ज्यादा लोग प्रतिवर्ष दुर्घटनाओं की चपेट में आ रहे हैं। सेव लाईफ फाउंडेशन के मुताबिक, भारत में हर घंटे 50 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं और इनमें 53 लोग हर घंटे मरते हैं। इनमें भी परिवार के कमाऊ सदस्य यानि की मरने वालों मंे 86 प्रतिशत पुरूष नागरिक होते हैं। जिनमें 35 से 40 आयु वर्ग वाले 35 प्रतिशत पुरूष और 15 से 28 वर्ष की आयु वर्ग वाले 31 प्रतिशत युवा लड़के होते हैं। वल्र्ड बैंक एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व के मुकाबले वाहनों के मामले में भारत की हिस्सेदारी मात्र 1 प्रतिशत है लेकिन हादसों के मामलों में हमारी यही हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है। 80 फीसदी दुर्घटना पीड़ितों को आपातकालीन चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं जबकि देश को इन सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 2.5 फीसदी जी.डी.पी. का आर्थिक नुकसान प्रतिवर्ष उठाना पड़ता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न वाहनों से होने वाली मौतों के आंकड़ों को देखें तो 22,845 मौतें ट्रक-लारी से, 5046 जीप से, 10 हजार 537 बसों से, 5,816 तिपहिया वाहनों से, 13 हजार 194 कारों से और 23 हजार 529 मौतें दोपहिया वाहनों से हुई थीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में सड़क सुरक्षा को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन नहीं किया जाता है यही वजह भी है कि हमारे यहां सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।
हिमाचल प्रदेश में भी वर्ष 2012-13 की अवधि में कुल 2867 दुर्घटनाओं में 1057 लोगों की जानें गई थीं जबकि 5422 लोग घायल हुए थे और कुल 3461 वाहन दुर्घटनाग्रस्त हुए थे। साल दर साल इन आंकड़ों में वृद्धि हो रही है। हिमाचल प्रदेश में दिन-प्रतिदिन बढ़तीं सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाते परिवारों के कमाऊ पुरूष सदस्यों की असामयिक मौतों की पीड़ा झेलते बच्चों के दर्द और महिलाओं की बेबसी को महसूस करना, उनके आंसूओं को पौंछना, उनकी तकलीफों पर कैसे मरहम लगे अब यह एक विचारणीय मुद्दा बन चुका है। इस मुद्दे पर न केवल जनजागृति जरूरी है बल्कि इससे ऊपर उठकर प्रदेश सरकार के द्वारा ऐसे पीड़ित परिवारों को दुर्घटना बीमा मुआवजों का त्वरित भुगतान हो यह भी वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
भारत में मोटर दुर्घटना प्रतिकार विधि-1988 अधिनियम की धारा 166 के अन्तर्गत मोटर दुर्घटना दावों का निपटारा किया जाता है जिसमें मात्र 10 रूपये की कोर्ट फीस लगती है। इसके साथ दुर्घटना में मृतक अथवा घायल व्यक्ति के परिजनों द्वारा एफ.आई.आर. डाक्टरी मुआयना रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाण पत्र, वाहन की पंजीकरण संख्या, फिटनेस प्रमाण पत्र, वाहन की बीमा पाॅलिसी और वाहन चालक का ड्राइविंग लाइसेन्स की फोटो प्रति के साथ दुर्घटना घटित होने के 90 दिनों के भीतर जिला न्यायालय में याचिका दायर करनी होती है। हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में देखें तो यह बेहद राहत की बात है कि प्रदेश में वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री मंसूर अहमद मीर ने अपने कार्यकाल की शुरूआत से ही मोटर दुर्घटना मुआवजा याचिकाओं के त्वरित निपटारे को अपनी प्राथमिकताओं में रखा है और प्रदेश उच्च न्यायालय में फैसले के लिए आने वाली याचिकाओं को प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करते हुए उचित मुआवजा राशि पीड़ित परिवारों को देने के आदेश बीमा कंपनियों को दिये हैं।
लेकिन सड़क दुर्घटनाओं मंे पीड़ित परिवारों के कई मामलों मंे अभी भी मुआवजा राशि के भुगतान के फैसलों से सम्बन्धित कई याचिकाएं जिला न्यायालयों में लम्बे समय से सुनवाई की बाट जोह रहीं हैं। हालात तब और बदतर हो जाते हैं जब दुर्घटना में घायल व्यक्ति को समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती है। डाॅक्टरों के टाल-मटोल वाले रव्वैय्ये अथवा आगे रैफर करो की नीति पर चलने के कारण पीड़ित व्यक्ति की रास्ते में ही मृत्यु हो जाती है। ऊपर से दुर्घटना में पीड़ित परिवारों के सदस्यों को सरकारी आश्वासनों का झुनझुना थमा दिया जाता है और जांच के नाम पर खानापूर्ति का क्रम चलता रहता है। ऊपर से बीमा कंपनियों के नुमाइंदों द्वारा बेवजह खींचतान और असंवेदनशील रव्वैय्या सामान्य नागरिकों को अंदर तक झकझोर देता है। कई मामलों में दुर्घटना में मृतक व्यक्ति के छोटे-छोटे बिलखते बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है तो वहीं दूसरी तरफ समय पर दुर्घटना मुआवजा न मिलने के चलते उन परिवारों की बेटियों की शादियां तक प्रभावित होकर रह जाती हैं। ऐसे समय में जब हिमाचल प्रदेश के अधिकांश कामकाजी लोग भारी कर्ज़ लेकर अपने बच्चों को महंगी शिक्षा दिलवा रहे हैं या मकान इत्यादि बनवा रहे हैं तो उन परिवारों का कमाऊ सपूत यदि दुर्घटना में अकाल मृत्यु के आगोश में चला जाए तो उन पीड़ित परिवारों की तो कमर ही टूट जाती है और ऐसे परिवारों की जिंदगी दोयम दर्जे की होकर रह जाती है। उपरोक्त परिस्थितियों में केन्द्र और राज्य सरकारों के पास ऐसे परिवारों को आर्थिक राहत प्रदान करने हेतू मुक्कमल योजनाएं एवं नीतियां होनी चाहिए। वहीं जिला न्यायालयों द्वारा समयबद्ध अवधि में दुर्घटना पीड़ित परिवारों को उचित बीमा मुआवजा एवं राहत राशि के फैसलों का निपटारा किया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा ऐसे पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा राशि प्रदान करने सहित दीर्घावधि सामाजिक जीवन को सुरक्षित बनाने हेतु पुख्ता नीतियां बनाने के लिए पहल करने की जरूरत है और ऐसे मामलों में सरकार द्वारा पीड़ित परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी भी दी जानी चाहिए।

 

 

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