Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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संकल्प शक्ति से होगा नूतन वर्ष में उज़ियारा।

 

 

नूतन वर्ष के आगमन के साथ ही पुनः हमारे पास एक नया सुअवसर आता है जब हम बीते वर्ष मंे अपूर्ण रह गईं अपनी कुछ इच्छाओं अथवा कार्यों को अपने संकल्पों की सूची मंे सम्मिलित करके अपने जीवन में उज़ियारे की भोर ला सकते हैं। ऐसा करने के लिये पहले अपने परिवार, मित्रों और शुभचिंतकों से भी सलाह मशविरा किया जा सकता है। यदि आप प्रज्ञावान हैं तो अपने अनुभवों को आज़माकर भी आप शनै-शनै सफलता की सीढियां चढ़ते हुए अपने जीवन में खुशियों के रंग भर सकते हैं। आप इतने भर में ही संतुष्ट न हों। यदि आप जागरूक, संवेदनशील और सुशिक्षित हैं तो अपने क्षेत्र, समाज और राज्य के उत्थान तथा विकास हेतु भी अपना योगदान देने के लिए आगे आएं।
सांसारिक सामाजिक बदलावों से पहले हमें अपने आंतरिक विकास एवं सुधार के प्रति भी सोचना पड़ेगा। पहले हमें अपनी बुरी आदतों के परित्याग का संकल्प लेकर नवीन योजनाओं का खाका खींचना होगा। प्रत्येक मनुष्य को अपनी कमजोरियांे, बुराईयों तथा क्षमताओं का एहसास होता है लेकिन दृढ़ संकल्प शक्ति के अभाव के चलते हम प्रायः उन्हें अनदेखा कर देते हैं और अपना अधिकांश समय दूसरों की बुराईयांे एवं कमियों को खोजने में नियोजित कर देते हैं। इसलिए यह तय कर लें कि यदि हमने अपनी उन्नति करनी है तो दूसरों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाए अपनी ऊर्जा तथा समय अपने को बदलने और अपनी तरक्की सुनिश्चित करने पर लगाएं। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने ऊपर तथा अपनी क्षमताओं पर पूरा यकीं रखें, सकारात्मक भावना बनाए रखें और नूतन वर्ष के प्रारम्भ में ही अपने नए लक्ष्यों की रूपरेखा बनाने और उन पर काम करने के तौर तरीकों के बारे में सोचें। अपने अंदर आत्मविश्वास की लौ जगाए रखें और रूकावटों, बाधाओें के बारे में सोचकर अपने पथ से कभी भी विचलित न हों, पीछे न हटें।
मेरे युवा साथियांे को भी चाहिए कि वे सदैव सकारात्मक सोच वाले लोगोें की संगत करें क्योंकि उन्हंे जीवन में आगे बढ़ना हैे तो जोश और जज़्बे की भावना से ओतप्रोत रहना पडे़गा। इसी तरह अनुशासित जीवन जीने वाले, आलस्य को कभी भी अपने नज़दीक फटकने नहीं देते हंै। आज के समय में जो व्यक्ति समय के महत्व को जानते हुए टाल-मटोल वाले रव्वैय्ये से दूर रहते हैं और अपने आपको ‘कम्फर्ट जोन’ से बाहर रखते हैं वो ही सफलता की नवीन कहानियां भी लिखते हैं। ज्ञान के बलबूते पर ही वैश्विक समाज ने वैज्ञानिक उपलब्धियाँ एवं आविष्कारों की नई इबारतें लिखी हैं। यही वजह भी है कि आज 21वीं शताब्दी में पूरे विश्व में शिक्षा प्राप्ति हेतु प्रतिस्पर्धा चल रही है। शिक्षा से हमारे अंतःकरण में सद्विचारों तथा नवीन संस्कारों की दिव्य ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है और हम गुणों-अवगुणों की समयोचित विवेचना करके शुभचिंतन द्वारा समाज में अपने अच्छे व्यक्तित्व की छवि निर्मित कर लेते हैं। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, ‘यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता तो मुझे यकीन है कि बुराईयों और दुखों का एक बहुत बड़ा हिस्सा मेरे जीवन से गायब हो गया होता।’
वर्तमान युग में मनुष्य के लिए पहले ही घरेलु समस्याओं के अंबार लगे हुए हैं ऊपर से कार्यक्षेत्र की परेशानियाँ अलग से मुंहबाए खड़ी रहती हैं। इन सबसे हम मानसिक रूप से प्रसन्नचिŸा रहकर ही पार पा सकते हैं। समाज में कई समस्याएं ऐसी भी होती हैं जो हमें अक्सर उद्वेलित करती रहती हैं जिनमंे से एक समस्या स्वच्छता को लेकर भी है। हम लोगों की तो यही आदत है कि अपने घर का कूड़ा-कचरा अगर पड़ोसी के दरवाजे़ पर ही गिरा आएं तो यहां वहां क्यों भटकना। हमसे अधिकतर लोग स्वच्छता सम्बन्धी सामान्य सी समस्या का हल भी सरकार से ही ढूंढते हैं और यह भूल जाते हैं कि इन गंदगी के ढंेरों को लगाने मंे योगदान भी तो हमारा ही है। चाहे बस, रेल यात्रा हो या पदयात्रा, स्कूल, कालेज, कार्यालय हांे अथवा सार्वजनिक स्थल हम बड़ी आसानी से कूड़ा-कचरा फेंककर आगे चलते बनते हैं क्योंकि अब हमारी आदत ही वैसी बन चुकी है? क्यों नहीं नववर्ष पर हम इसी बड़ी गंदी आदत से छुटकारा पाने का संकल्प लें। अपने घर और आसपास के परिवेश के वातावरण एवं पर्यावरण को प्रदूषण रहित और स्वच्छ बनाने हेतु कोई ठोस पहल करें। क्यों नहीं अपने गली-मोहल्ले के बडे़ बच्चों एवं युवाओं की टोली का एक संगठन बनाकर साप्ताहिक अथवा पाक्षिक आधार पर स्वच्छता अभियान चलाएं? ऐसे कार्यों के लिए निश्चित रूप से जहां संगठन की जरूरत पड़ती है वहीं सभी नागरिकों से ईमानदारी की अपेक्षा भी रहती है कि वे अपने घरों के कूडे़-कचरे का उचित स्थल पर निपटान करें।
इसी प्रकार से आज हमारे समाज में बड़ी संख्या में पढे़ लिखे युवा बेरोजगार घूम रहे हैं ऐसे युवाओं को घबराने एवं विचलित होने के बजाए धैर्यपूर्वक और शांतचिŸा रहकर अपने सुखद भविष्य के लिए नववर्ष के शुभारम्भ पर जरूर कोई नया संकल्प लेना चाहिए कि किस प्रकार से वह सम्मानपूर्वक, ईमानदारी और मेहनत के बलबूते पर अपनी आजीविका कमा सकते हैं। बेहतर होगा कि ऐसे युवा साथी सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाए स्वरोजगार का मंत्र लेकर अपना कामधन्धा शुरू करने के बारे में सोचें। एकबार लक्ष्य निर्धारित हो जाने तथा उस पर संकल्पित मन से जुट जाने पर हम निश्चित रूप से सफलता दर्ज़ कर सकते हैं। संक्षेप में हम एक सूत्र पर चर्चा करें तो वह न्यूमोनिक (संक्षेप में याद करने की आसान पद्धति) स्मार्ट (एस.एम.ए.आर.टी.) है, जिस पर चलते हुए भी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। सबसे पहले अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए विशेष कार्यप्रणाली को अपनाएं, क्या वह पहले भी परखी गई है? क्या वह असाध्य है अथवा उसे पहले भी प्राप्त किया गया है? क्या आपके द्वारा लिया गया संकल्प सार्थक और प्रासंगिक भी है अथवा नहीं? और क्या हम अपने लक्ष्य का पीछा कर सफलता दर्ज कर सकते हैं? याद रखें, यदि हम प्रसन्न रहते हैं और हमारे हौंसले बुलन्द होते हैं तो फिर सफलता भी हमसे ज्यादा दूर नहीं होती।

 

 

 अनुज कुमार आचार्य

     

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