अनुज कुमार आचार्य
योग के बारे में कहा जाता है कि, ‘‘योग, आत्मा की, आत्मा तक, आत्मा के माध्यम से एक यात्रा है।’’ योग का अभ्यास करने की पहली आवश्यकता शरीर, मन और वातावरण की शुद्धता है। शास्त्रों में शरीर और मन के संतुलन को योग कहा गया है। भारतीय संदर्भ में देखें तो योग लगभग 5 हजार वर्ष पुराना शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है। योग शिक्षा के अनुसार, शिव को प्रथम योगी अथवा आदियोगी माना जाता है। योग गाथा को वेदों, उपनिषदों, बौद्ध, जैन परम्पराओं, दर्शन, रामायण, शिव भक्ति परम्पराओं, वैष्णव, तांत्रिक परम्पराओं, भगवत् गीता और महाकाव्य महाभारत में भी देखा जा सकता है। विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि, योग अभ्यास पूर्व वैदिक काल से होता चला आ रहा है और महान ऋृषि पंतजलि ने पूर्व से चली आ रही योग क्रियाओं, अभ्यासों, इसके अर्थ और ज्ञान को ‘‘पंतजलि योग सूत्र’’ के माध्यम से परिभाषित किया था। पतंजलि के बाद के कालक्रम में भी अन्य कई ऋृषियों एवं योग गुरूओं ने इस विद्या को विकसित करने में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है। तब से लेकर वर्तमान समय तक आते-आते अनेक भारतीय योग गुरूओं की निरन्तर साधना और इस विद्या के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक देशों में विस्तार और प्रचार-प्रसार से करोड़ों नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधी अनेक फायदे हुए हैं और अब तो भारत समेत विश्वभर के लोगों में यह धारणा बलवती हो चुकी है कि योग का अभ्यास अनेक बीमारियों से बचाता है और सुन्दर स्वास्थ्य बनाए रखता है।
समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, सोशल मीडिया, इंटरनेट और इलैक्ट्राॅनिक मीडिया और भाषाई मीडिया के व्यापक चलन में आने के बाद से भारतीय जनमानस का रूझान भी योग क्रियाओं से अपने स्वास्थ्य की उन्नति की ओर गया है। हिमाचल प्रदेश के बहुसंख्यक नागरिकों ने तो अब योग क्रियाओं को अपनी प्रातःकालीन दिनचर्या का बेहद महत्वपूर्ण अंग ही बना लिया है। वैसे भी ईश्वर प्रदत्त प्राकृतिक सौंदर्य एवं जलवायु के उपहार से मालामाल हिमाचली लोगों द्वारा योग पद्धति को अपनाने से उनकी जीवन प्रत्याशा दर में और बढ़ौत्तरी हुई है। गत वर्ष जब पहली बार नई दिल्ली के राजपथ सहित विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था, तो हिमाचल प्रदेश के भी नागरिकों, प्रशासन, एन.सी.सी. के केडेटों, स्कूली बच्चों ने इस अभियान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषण की थी। इससे पहले भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में सितम्बर 2014 को दिए गए अपने भाषण में उन्होंने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित करने की मांग की थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘‘योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है। यह मन और शरीर, विचार और कर्म की एकता, नियंत्रण और संतुष्टि, मानव और प्रकृति के बीच तालमेल, स्वास्थ्य और तंदरूस्ती के एक समग्र उपागम का प्रतीक है। यह अभ्यास नहीं बल्कि स्वयं विश्व और प्रकृति के साथ एकता के भाव की खोज है। 21 जून को ग्रीष्म संक्राति है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में अपनाने का सुझाव देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि, यह दिन उत्तर गोलार्द्ध में वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है और संसार के कई भागों में इसका विशेष महत्व है। तब संयुक्त राष्ट्र संघ के 175 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था।
जहां तक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रतीक चिन्ह की बात है तो इस प्रतीक चिन्ह में मुड़े हुए दोनों हाथ योग, एकता का प्रतीक हैं, जोकि व्यक्तिगत चेतना का सार्वभौमिक चेतना के साथ एकता, मस्तिष्क और शरीर, मानव और प्रकृति के समन्वय को दर्शाता है, स्वास्थ्य और सेहत का एक सम्पूर्ण उपागम है। इसके भूरे रंग की पत्तियां पृथ्वी को, हरे रंग की पत्तियां प्रकृति को, नीला रंग जल तत्व को, चमक अग्नि तत्व और सूर्य ऊर्जा और प्रेरणा के स्रोत का प्रतीक है। जबकि प्रतीक चिन्ह का सूत्र वाक्य, ‘‘मानवता के लिए सद्भावना और शांति’’ योग के सारतत्व को दर्शाता है। योग संस्कृत धातु ‘युज’ से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है कि व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह का मिलन है। जैसे बाहरी विज्ञान की दुनिया में आइंस्टीन का नाम सर्वोपरि है वैस ही भीतरी विज्ञान की दुनिया के आइंस्टीन, पंतजलि माने जाते हैं। जैसे पर्वतों में हिमालय श्रैष्ठ है, वैसे ही समस्त दर्शनों, विधियों, नीतियों, नियमों, धर्मों और व्यवस्थाओं में योग श्रैष्ठ है।
योग शिक्षा के अन्तर्गत अनेक क्षेत्र आते हैं लेकिन 2 प्रमुख क्षेत्र हैं-पहला-अध्यापन और अनुसंधान और दूसरा-रोगों का उपचार। भारत में 30 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में योग विषय पर स्नातक एवं स्नात्तकोत्तर पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों में मुख्यतः शरीर रचना, दर्शन, ध्यान, व्यायाम, योग और ध्यान का सिद्धांत एवं नियम इत्यादि के अलावा विभिन्न प्रकार की आसन क्रियाएं सिखाई जाती हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अलावा डाॅ. भीमराव अम्बेदकर विश्वविद्यालय आगरा, अमरावती विश्वविद्यालय अमरावती (महाराष्ट्र), गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद (गुजरात), गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार (उत्तराखंड), मुम्बई विश्वविद्यालय मुम्बई (महाराष्ट्र), देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय इंदौर (मध्य प्रदेश), डाॅ. वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय तिरूपति (आंध्र प्रदेश) आदि मुख्य हैं। इसके अलावा भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन आयुष विभाग द्वारा स्थापित मोराजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान, अशोक रोड, नई दिल्ली एक स्वायत्त संस्थान है और यहां पर भी बी.एस.सी.-योग विज्ञान, योग विज्ञान में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट और योग ओ.पी.डी. कार्यशालाएं, बच्चों एवं विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष योग शिविर लगाए जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में वर्ष 1979 से योग शिक्षा में डिप्लोमा और वर्ष 2009 से एम.ए. योग की शिक्षा दी जा रही है। अभी तक प्रदेश में 2 हजार छात्र योग में डिप्लोमा अैर करीब 150 छात्र एम.ए. योग डिग्री हासिल कर चुके हैं लेकिन रोजगार नीति में योग शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण बेरोजगार घूम रहे हैं। अभी तक हिमाचल प्रदेश में योग विज्ञान विषय में, एम.फिल. ओर पी.एच.डी. करने की व्यवस्था भी नहीं थी, लेकिन समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शीघ्र ही एम.फिल. ओर पी.एच.डी. नामक नए उपाधि पाठ्यक्रम शुरू करने जा रहा है। प्रबुद्ध लोगों का यह भी मानना है कि मात्र आप एक दिन योग दिवस मनाकर योग नहीं सीख सकते हैं। इसके लिए केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों को योग शिक्षा लेने के इच्छुक छात्रों के लिए पाठ्यक्रम तथा नौकरी हेतु कोई ठोस नीति बनानी होगी।
पिछली एक शताब्दी में योग शिक्षा के महत्व एवं प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में कई महानुभावों ने अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है, जिनका वर्णन यहां करना जरूरी है। तिरूमल्लाई कृष्णमाचार्या को ‘‘आधुनिक योग का जनक’’ माना जाता है। मैसूर के महाराजा के संरक्षण में इन्होंने भारत भ्रमण कर योग विद्या का प्रचार-प्रसार किया और ऐसा भी कहा जाता है कि श्री तिरूमल्लाई योग क्रियाओं द्वारा अपनी हृदय की धड़कनों को भी नियंत्रित कर लिया करते थे। भारत के ही एक अन्य योग गुरू स्वामी शिवानंद ने हठ योग, कर्म योग और मास्टर योग का प्रचार-प्रसार किया। श्री बी.के.एस. अय्यंगर ने पंतजलि योग सूत्रों को पुनर्भाषित कर ‘अय्यंगर योग’ प्रतिपादित किया और वे 95 वर्ष की आयु में भी शीर्षासन मुद्रा का अभ्यास कर लेते थे। अपनी अष्टांग योग विद्या के लिए प्रख्यात के. पट्टाभि के हाॅलीवुड के अनेक सितारे शिष्य थे। महेश योगी, परमहंस योगानंद ने मेडीटेशन और क्रिया योग की शिक्षाओं का प्रचार किया। ईशा फांउडेशन के सद्गुरू जग्गी वासुदेव, आर्ट आॅफ लिविंग के श्री-श्री रविशंकर और पंतजलि संस्थान के बाबा रामदेव ने तो योग शिक्षा का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार करने में अहम भूमिका निभाई है। अस्सी के दशक में दूरदर्शन पर योग क्रियाएं सिखाने वाले धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी को भला कौन भुला सकता है। स्वामी चिदानंद सरस्वती, श्री अरविन्दो घोष और स्वामी विवेकानंद आदि आध्यात्मिक गुरूओं ने भारतीय संस्कृति के मूल्यों, महत्व और विशिष्ट ज्ञान को विश्व भर में पहुंचाने में अपना अनुपम योगदान दिया है। इसी तरह विक्रम चैधरी, भारत ठाकुर और सुनील सिंह जैसे नये नामों ने आर्टिस्टिक और माॅर्डन योगा को विश्वभर में नवीन पहचान दिलाई है। इस वर्ष 21 जून 2016 को दूसरा, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’’ विश्व भर में मनाया जाएगा। इस बार भारत में इसका विशेष आयोजन चंडीगढ़ में होने जा रहा है जहां होने वाले योग कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री विशेष रूप से भाग लेंगे। योग अब हमारे ‘लाइफ स्टाईल’ का हिस्सा बन चुका है केवल जरूरत इस बात की है कि सरकारें गंभीरतापूर्वक योग शिक्षा को रोजगार से जोड़ने के लिए नई नीतियों और कार्यक्रमों का खाका लेकर सामने आए ताकि योग शिक्षा लेकर भी बेरोजगार घूम रही हमारी युवा पीढ़ि के भविष्य को सुरक्षित बनाया जा सके।
अनुज कुमार आचार्य
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