Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सीखने का दायरा बढ़ाएं

 

 

पिछले कुछ वर्षों में स्मार्ट फोन की उपलब्धता और इंटरनेट का प्रयोग बढ़ने के चलते आज वैश्विक ज्ञान का भंडार हमारी अंगुलियों के दायरे में सिमट चुका है।इलैक्ट्राॅनिक्स माध्यमों-टी. वी. चेनल्स, अनेकों बहुउपयोगी एप्प, सोशल साइट् सजैसे-व्हाट्स एप्प, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिवट्र और इंटरनेट इत्यादि के प्रचलन के कारण सभी प्रकार के ज्ञान की बाढ़ इन माध्यमों पर रोजाना प्रचारित प्रसारित होते हुए देखी जा सकती है।इसी वजह से कहीं-कहीं पाठ्य पुस्तकों के इतर अन्य ज्ञानोपयोगी पुस्तकों-पत्रिकाओं को पढ़ने की प्रवृŸिाभी घट रहीहै।इन दिनोंअधिकांश लोगांे में एक नई सोच और देखने को मिल रही है और वह है”हमंे सब कुछ पता है”अथवा जरूरत पड़ीतोगुगलपरसर्चकरलेंगे।जाहिरसीबातहैकिस्वयं न पढ़ने की आदतविकसित न होपाने के कारणहमप्रायः कईरोचकज्ञानवर्धकबातोंकोसीखनेसेभीवंचितरहजातेहैं।आज, हमेंसब पता हैवालीइसीसोचऔरनज़रियेकोअपनेअंदरविकसितकरने की जरूरत है।
वर्तमान युगमेंहमारेइर्द-गिर्दहजारोंप्रेरणास्पदसफलताकीकहानियांमौजूदहैं। जरूरत हैअपनेआपको पढ़ने औरनवीनज्ञान एवंबातांेकोसीखने की औरप्रवृŸाकरनेकीऔरऐसाहमअपनीकार्यप्रणालीमेंबदलावलाकरसहजहीकरसकतेहैं।अच्छेलोगोंकीसंगति, सुन्दरज्ञानऔरअच्छीपुस्तकों के बलबूते न केवलहमारी एक नवीनसोचविकसितहोतीहैबल्किस्वयंमेंबदलावलाकरहमसभीसफलतापथपरतेजीसेअग्रसरहोसकतेहैं।वर्तमान युग”कम्यूनिकेशनस्किल”काहै-व्यवहारकुशलताकाहै।हमअपनासामाजिककामकाजीदायराव्यापकबनाकरहीइसदिशामंेपरिपक्वताहासिलकरसकतेहैं।इसकेअलवाहमेंनिरर्थकवार्तालापसेअपनेआपकोदूर रखने की जरूरत है।हमेंअनावश्यक बहसकरनेकीआदतसेबचनेऔरसार्थकवार्तालाप द्वाराअपनीसमस्याओंकाहल खोजनेपर ध्यानदेनाचाहिए।
अपना एक लक्ष्य बनाएंऔरउसेबार-बार न बदलें।हमेशाअपने लक्ष्य को याद रखें यदिकिसीवजहसेआपकोअपने लक्ष्य कोप्राप्तकरनेमंेसफलताहासिल न होपारहीहोतोतत्काल लक्ष्य को न बदलकर, लक्ष्य कोप्राप्तकरने के अपनेतौर-तरीकोंऔरकार्यप्रणालीकोबदलें।अपनेप्रत्येककार्यको समय परसमाप्तकरने के लिए समय की पाबंदीऔर समय के प्रबंधनपरजोरदें।इसबातसेहमसभीभली-भांतिपरिचितहीहैंकिजिसप्रकार नदी कापानीबहकरनीचेकीओरजाकरवापिसपीछेनहींलौटताहै, उसीप्रकारबीताहुआ समय भीकभीलौटकरनहींआताहै।अतएव समय की कद्रकरें।अपनीमानसिकभावनाओं एवंदिमागकोनियंत्रित रखेंऔरइन्हेंफिजूलकीसोचमें न उलझाएं।मानसिकतनावकोकभीभीअपनेनज़दीक न फटकनेदें।
हमेंअपनीपाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्तदूसरीज्ञानवर्धकपुस्तकांेको पढ़ने मेंभीरूचिलेनीचाहिए।कुंए के मेंढ़क न बनेरहेंऔरअपने अर्धज्ञानकोजबर्दस्तीदूसरोंपर न थोपें।अपनेसीखनेकादायराव्यापकबनाएं। समय-समय पर धार्मिकपुस्तकेंभी पढें़ क्योंकिहमारीसंस्कृति की अनेकगूढ़ बातों एवंरहस्यों की जानकारीहमेंइन्हींपुस्तकोंसेप्राप्तहोतीहै।आजसे 40-50 वर्षपूर्वगीताप्रैस, गोरखपुर द्वाराप्रकाशितपुस्तक ’कल्याण‘ औरउसकासंग्रहग्रन्थ रूप मेंप्रायः घरांेंमेंउपलब्ध रहताथा।अपनीबाल्यावस्थामेंउसमें वर्णित कहानियों, उपदेशोंऔर श्लोकोंकाअनुवाद पढ़करमेरेजैसेविद्यार्थियोंकोभीअपनीप्राचीनसंस्कृतिऔरज्ञानकीगूढ़ एवंमहत्वपूर्णजानकारियोंकोआत्मसातकरनेकीप्रेरणामिलतीथी।भगवद्गीतामेंश्रीकृष्ण ने ज्ञानकाअर्थस्पष्टकरतेहुए बतायाहैकिबुद्धि काअर्थहैनीर-क्षीरविवेककरनेवाली शक्तिऔरज्ञानकाअर्थहै-आत्मातथापदार्थकोजानलेना।लिहाजाहमेंहमारेपासउपलब्ध संस्कृतिजन्य ज्ञानको पढ़ने समझने और तदनुरूप आचरण करने की हमेशा आवश्यकता रहती है ताकि हम सभीअपनी जीवन रूपी नैय्या को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा सकें।

 


अनुज कुमार आचार्य

 

 

 

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