आजादी की 69वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर जंतर-मंतर, दिल्ली में धरने पर बैठे पूर्व सैनिकों के साथ हुई पुलिसिया बदसलूकी, टी.वी. पर एक बुजुर्ग पूर्व सैनिक की फटी कमीज और लटके हुए बहादुरी के तमगे, चेहरों पर छायी निराशा और उपेक्षा की पीड़ा उस समय और बढ़ जाती है जब लाल किले की प्राचीर से स्वतन्त्रता दिवस पर अपने सम्बोधन में देश के प्रधानमंत्री श्रीमान् नरेन्द्र मोदी जी पूर्व सैनिकों को एक बार फिर ‘‘वन रैंक वन पेंशन’’ के मसले पर झूठी दिलासा देकर चलते बनते हैं। जाहिर सी बात है कि पूर्व सैनिकों एवं उनके आश्रितों और लाखों सशस्त्र सेनाओं के अफसरों एवं जवानांे के मनों एवं दिलों में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि उनका प्यारा देश भारत और उसकी बागडोर थामने वाले नेताओं और प्रधानमंत्री ने उनके साथ सम्माजनक व्यवहार क्यों नहीं किया ? संवेदनशील होने और दम-खम वाला होने का दावा ठोंकने वाले प्रधानमंत्री की इच्छाशक्ति भी यहां आकर जवाब दे जाएगी इसकी उम्मीद नहीं थी। आखिर कब तक पूर्व सैनिकों के साथ छल और धोखे का खेल खेला जाएगा ? सीमाओं पर अपनी तैनाती, युद्ध के समय, आतंकवाद से लड़ाई, घात-प्रतिघात की लड़ाईयों और प्राकृतिक आपदाओं के समय हमारे बहादुर जवान तनिक भी देरी किए अथवा विश्राम लिए तत्काल अपने कत्र्तव्य के पालन में जुट जाते हैं। उस वक्त यह कत्र्तव्यनिष्ठ, ईमानदार वीर जवान दुश्मन की गोलियों को सीधे सीने पर झेलते हैं और लड़ाई की जटिलताओं का हवाला भी नहीं देते हैं। क्या कोई मुट्ठी भर वेतन और पेंशन के लिए अपनी जान को दाँव पर लगाने के लिए तैयार होगा ? जी नहीं, इसके पीछे इनकी राष्ट्रभक्ति की भावना ही सर्वोपरि रहती है।
अपने राष्ट्र रक्षकों, पूर्व सैनिकों और वीर नारियों से यह दांव-पेंच, शकुनी चालें खेलना क्या जरूरी है ? नौकरशाही के लिए अपने ही देश की रक्षा करने वालों के साथ यह घिनौना व्यवहार, शोषण, भेदभाव भरा रव्वैय्या और सोच रखना बेहद विचलित करने वाला सबब बन चुका है। प्रधानमंत्री महोदय, जरा आप गंभीरतापूर्वक सोचिए कि, आप क्या संदेश अपनी सशस्त्र सेनाओं में सेवारत्त अधिकारियों और घर बैठे पूर्व सैनिकों, वीर नारियों को दे रहे हैं ? क्या कोई राष्ट्र अपनी मजबूत सेनाओं के अभाव में सुरक्षित राष्ट्र की कल्पना कर सकता है ? बातें आप शक्तिशाली और आर्थिक रूप से सक्षम भारत राष्ट्र के बनाने की करें और दूसरी तरफ अपनी जिन्दगी के आखिरी लम्हों को जीते बुजुर्ग पूर्व सैनिकों के साथ धक्का-मुक्की हो, उनकी कमीजें फाड़ी जाएं, इन दृश्यों से सेवारत्त और घर बैठे पूर्व सैनिकों के बीच क्या संदेश जा रहा है ? क्यों हमारी सशस्त्र सेनाओं के अफसरों, जवानों और पूर्व सैनिकों के मनोबल को तोड़ने की कुचालें रची जा रही हैं ? आखिर क्यों प्रधानमंत्री जी तारीख पर तारीख दे रहे हैं ?
सलाम और धन्यवाद प्रिंट और इलेक्ट्राॅनिक्स मीडिया की टीमों का भी, जिन्होंने निष्पक्षता और पूर्वाग्रहों से ग्रसित हुए बिना पूर्व सैनिकों की जायज ‘वन रैंक वन पेंशन’ की मांग पर अपनी कवरेज दी। क्या हमें बार-बार अपने अतीत मंे की गई उन गल्तियों को अपने शासकों को याद दिलाते रहना पड़ेगा कि कमजोर सेनाओं, आपसी फूट और अदूरदर्शी शासकों की वजह से ही इस गौरवशाली राष्ट्र को सैंकड़ों वर्षों की गुलामी की जंजीरों मंें जकड़े रहना पड़ा था। प्रधानमंत्री जी को दिल्ली में उच्च पदों पर आसीन अफसरशाही के कुत्सित इरादों को समय रहते समझ लेना चहिए। क्यों नहीं भाजपा से जुड़े पूर्व सैनिक, पार्टी संगठन के ओहदों से त्यागपत्र देकर अपनी पार्टी और सरकार को बताएं कि उनके लिए यह मुद्दा कितना जायज और जरूरी है। जिस प्रकार से प्रधानमंत्री जी ने लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में जाहिर किया है कि सरकार के पास रूपयों की कोई कमी नहीं है तो फिर जटिलता किस बात की है और उन जटिलताओं को कौन हवा दे रहा है ? जब 17 मार्च, 2015 को वर्तमान रक्षामंत्री श्री मनोहर परिर्कर ‘वन रैंक वन पेंशन’ पर अपना लिखित अनुमोदन दे चुके हैं तो फिर क्यों इस मसले को च्यूंगम की तरह लम्बा खींचा जा रहा है। 01 जनवरी, 2016 को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की जानी हैं। क्या उसके मद्देनज़र सरकार ‘वन रैंक वन पेंशन’ पर सैद्धांतिक सहमति की आड़ मंे बदलाव लाकर पूर्व सैनिकों को एक बार फिर मट्ठी भर पेंशन देकर चलता करने, टरकाने की नीति पर तो नहीं चल रही है ?
केन्द्र सरकार को यह भी अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि इस बार धरना-प्रदर्शन करने वाले लोग कुछ अलग प्रवृति, जज्बे एवं सोच वाले सेना के अनुशासित सिपाही हैं जिन्हें झुकाना, बरगलाना या टरकाना आसान न होगा। हिमाचल प्रदेश, सेवारत्त एवं पूर्व सैनिकों की जन्मस्थली है। बहुसंख्यक परिवारों में से कोई न कोई सदस्य आपको सेना में नौकरी करता हुआ या पूर्व सैनिक के रूप में मिल ही जायेगा। लिहाजा हिमाचल प्रदेश के सैन्य सरोकारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अब समय आ गया है कि हिमाचल प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं और वर्करों को व्यक्तिगत एवं दलगत विचारधारा से ऊपर उठकर पूर्व सैनिकों की ‘वन रैंक वन पेंशन’ जैसी जायज मांग के समर्थन में खुलकर आगे आना चाहिए और केन्द्र सरकार पर इसे तुरन्त लागू करने हेतु दबाब बनाना चाहिए।
अनुज कुमार आचार्य
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY