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युवाओं में बढ़ती अनुशासनहीनता

 

 

 

अनुज कुमार आचार्य
विश्व का वर्तमान परिदृश्य बीते सौ वर्षों में अभूतपूर्व रूप से परिवर्तित हो चुका है। वजह साफ है विज्ञान के बलबूते हमारे वैज्ञानिकों ने नित नये आविष्कारों को खोजकर हमारी जीवन शैली को आमूल चूल रूप से बदलकर रख दिया है। इसके पीछे शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलावों और सभी वर्गों के बच्चों तक शिक्षा की पहुंच को नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है। हमारी आज की युवा पीढ़ि शिक्षा से प्राप्त ताकत के चलते सफलता की नईं ऊंचाईयों पर पहुंच चुकी है तो वहीं कुछ प्रतिशत युवा बच्चे अपने माँ-बाप की खून-पसीने की कमाई को गुलछर्रों में उड़ाकर शायद मौज मस्ती, आवारागर्दी एवम् अनुशासनहीनता को ही जीवन का मर्म समझ बैठे हैं। भारत जैसा राष्ट्र जहां विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी मौजूद है वहां युवाओं में बढ़ती अनुशासनहीनता बेहद चिंतनीय एवम् विचारणीय मुद्दा बन चुका है। कहते हैं, ‘‘युवा होना हर क्षण खतरे में जीना है और वृद्ध होना सुरक्षा की तलाश में भटकना है।’’ क्या वास्तव में, आज का युवा खतरे में जीना चाहता है (सकारात्मक संघर्ष/चुनौतियां) या पलायनवादी नीति पर चल रहा है ?
प्रेम, साहस, शक्ति, ऊर्जा और संकल्प का ही दूसरा नाम युवावस्था है और किसी भी राष्ट्र की तरक्की में वहां की युवा ताकत बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखती है। बेहतर रोजगार प्राप्ति की दिशा में पठन-पाठन और उच्च शिक्षा का अपना अलग महत्व है-जहां कुछ युवा इसके प्रति काफी सर्तक और गंभीर नज़र आते हैं तो वहीं भौतिकतावाद और नशीले पदार्थों की ओर उन्मुख कुछ युवा शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक दिवालिएपन के चलते अपना सर्वश्रैष्ठ देना तो दूर रहा उल्टे अपने-अपने शिक्षण संस्थानों, परिवार, समाज और देश के समक्ष गंभीर समस्याएं एवं चुनौतियां खड़ी करते नज़र आ रहे हैं। महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन के माहौल के विपरीत युवा उच्छृंखलता, फूहड़ता, फैशनबाजी, नशीले पदार्थों का सेवन और राजनीति मंें पड़कर वहां अनुशासनहीनता का खुलेआम प्रदर्शन कर रहे हैं। अमूमन रोजाना, प्रिंट और इलैक्ट्राॅनिक मीडिया ऐसे अनुशासनहीन युवाओं के कारनामों की ख़बरों से अटे पड़े रहते हैं। संस्कारों के अभाव और मानवीय मूल्यों में हृास के कारण हमारे युवा पतन की गर्त में धंसते चले जा रहे हैं। आज का युवा अपनी मादक पदार्थों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपराधी बनने से भी नहीं हिचकिचा रहा है। इसी अनुशासनहीनता के चलते हमारे कई पथभ्रष्ट युवा अलगाववादी, आतंकवादी, नस्लवादी, नक्सलवादी और साम्प्रदायिक विचारधारा के पैरोकारों के चंगुल मंे फंस जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृति का अंधाधुंध अनुसरण, अश्लील फिल्में और इंटरनेट की आजादी हमारी युवा पीढ़ि को संस्कारविहीन बनाकर सामाजिक पतन की ओर ले जा रही है। जाहिर है कि जब आधुनिकता की आड़ में हमारी युवा पीढ़ि की जीवन शैली बदल चुकी है तो वह सफलता पाने के लिए शार्टकट फार्मूलों को अपनाने से भला क्यों हिचकिचाएगी और यही सोच व व्यवहार उन्हें नैतिक पतन की ओर ले जा रहा है। यदि समय रहते हमारे अभिभावकों और नीति-निर्माताओं ने सुधारात्मक एवं उपचारात्मक उपाय न ढ़ूंढ़े तो निःसन्देह हमारी युवा पीढ़ि के पूर्णतया पथभ्रष्ट हो जाने की प्रबल आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
आज आवश्यकता है कि नए सिरे से हमारी युवा पीढ़ि के उत्थान के लिए संस्कारों पर आधारित शिक्षा प्रणाली की शुरूआत की जाए। हमारे शिक्षण संस्थानों मंें बेहतरीन सुविधाओं के साथ उच्च शिक्षित प्रशिक्षित विशेषज्ञ अध्यापकों की व्यवस्था को यकीनी बनाया जाए ताकि वे आत्मनिर्भर, स्वाबलम्बी, स्वाभिमानी युवाओं की नई पौध को तैयार कर सकें। शिक्षण संस्थानों सहित राष्ट्र भर में मादक एवं नशीले पदार्थों की उपलब्धता को हतोत्साहित करने के साथ उचित दण्ड का प्रावधान भी होना चाहिए। हमारे शिक्षण संस्थानों को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त बनाकर वहां राजनीतिक गतिविधियां, छात्र संघ चुनाव इत्यादि की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए। रेगिंग का कोढ़ अभी भी परेशानी कारक सबब बना हुआ है। अश्लीलता परोसने वाली फिल्मों, टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लगनी चाहिए। रोजगार परक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देकर युवाओं को स्वाबलम्बी और स्वाभिमानी बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए ताकि वे विध्वंसकारी ताकतों का मोहरा न बन पाएं। शिक्षा प्राप्ति को महंगा होने से रोका जाना चाहिए, अभिभावकों पर अनावश्यक रूप से शिक्षा ऋृणों का बोझ खत्म होना चाहिए। आदर्शों एवं नैतिक मूल्यों पर अवलम्बित शिक्षा प्रदान कर बच्चों में मानवीय मूल्यों और गुणों को विकसित कर उन्हें समाज का उपयोगी एवं जिम्मेदार अंग बनाने से ही समाज एवं भारत का कल्याण होगा।

 

 

 

अनुज कुमार आचार्य

 

 

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