Anup Srivastava
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हास परिहास पर अगर उपहास भारी पड़ जाता है तो व्यंग्य के भी हास्यस्पद होने का खतरा बढ़ जाता है ...
व्यंग्य - बारादरी की स्थिति क्या सचमुच यही है ?
जब हम किसी पर धूल फेंकते है तो अपने हाथ पहले गन्दे कर लेते हैं ....
---और शिशुपालों की निन्नानवे गालियां ही नज़रन्दाज़ की जा सकती हैं सौवीं नहीं ...
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