Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आजकल

 

तुम ठीक से बात नहीं करते,
मुझसे नाराज हो क्या?
नहीं ऐसा तो नहीं है!
तो फिर बताओ बात क्या है?
क्यों ऐसे बदले हुए लग रहे हो!
नहीं नहीं हुआ कुछ भी नहीं है,
मैं क्यों नाराज़ होऊंगा किसी से
क्या औकात है मेरी,
बस..
भीतर के कुछ विश्वासों को
अवसरवादिता के पत्थर पर
पटक पटककर
घायल कर दिया गया है
कुछ उम्मीदें मर गईं हैं
कुछ डरकर दिल के
सबसे पिछले कोने में दुबक गयी हैं
बस ये थोड़ा सा दर्द है
जिसने मुझे अपनेपन से
दूर रहने पर मजबूर किया है
सो, थोड़ा वक़्त तो लगेगा न
इससे उबरने में,
पर तुम चिन्ता मत करना
मैं फिर खड़ा मिलूँगा तुमको
वहीं…
उसी प्यार के बाजार में,
जहाँ लोग धोखे खाने के लिये
खड़े रहते हैं।

-अनुराग ‘अतुल’


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