आत्म मंथन
जिस समय सब कुछ बिकने के लिए तैयार हो रहा था जहाँ कुछ लोगों ने अपना स्तर उठाने के लिए कविता का स्तर गिरा दिया, उस समय में ऐसे लोगों की अत्यधिक आवश्यकता उत्पन्न हुई जो अपना स्तर गिरा कर भी साहित्य-धर्म के उस मूल्य के लिए लड़ें जिसके लिए हमारे पूर्वज लेखक और कवि स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारियों के साथ पिट रहे थे, जेल जा रहे थे।
मुझे इस बात का कोई गर्व नहीं है कि जो पढ़ा-लिखा, उस पर इस समय हिन्दी कवि सम्मेलनों के लगभग सभी मानक कवियों ने दिल खोलकर प्रशंसा की है और मुझ पर भविष्य में कुछ बड़ा कार्य करने का विश्वास व्यक्त किया लेकिन मुझे इस बात पर गर्व ज़रूर रहेगा कि जिस समय मुझे अर्थ की सबसे अधिक आवश्यकता थी, लगातार बीमारियां और जीवन-संघर्ष मुझे तोड़ रहे थे, उन सारे लोगों से संबंध होते हुए भी, जिनसे केवल यह कह भर देता कि दादा ज़रा ध्यान रखिये तो न जाने कितने बादल मरुथल पर बरस जाते, मैं उस चातक की भाँति मौन रहा जो स्वाति नक्षत्र आने की प्रतीक्षा करता है। कई बार मन में आया भी, कुछ शुभचिंतकों ने कहा भी लेकिन यह कार्य गीता के उस मूल जीवन सूत्र के विपरीत होता जिसमें कहा गया है कि कर्म करो और फल की इच्छा मत करो। कर्म- फल के सिद्धान्त पर मुझे अटूट विश्वास है।
सोचता हूँ ..अगर कोई मनुष्य प्रसन्न भी हो जाये तो वह अधिक से अधिक क्या दे सकता है जो हम उससे माँगे? किन्तु यदि ईश्वर प्रसन्न हो गया तो वह हमें वो दे देगा जो शायद हम और आप सोच भी नहीं सकते।
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#अनुराग_अतुल
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