Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राष्ट्रकवि दिनकर को पढ़ते पढ़ते

 

यूँ तो हारे हुए लोग भी दुनिया में बन गए विजेता ।
जैसे चार चुटकुले पढ़कर कोई बना मंच का नेता ।
लेकिन जिसमें भाव-अर्थ है, मौलिकता औ’ जीवन-दर्शन।
वही काव्य ‘दिनकर’ बन करता है मानवता का पथ रोशन।
हल्कापन बेहद अच्छा है , रंच भार भी है आवश्यक ।
जीत सुखद लगती है सबको, किन्तु हार भी है आवश्यक !

अपने जीवन-यापन को तो पशु भी भोजन,भवन खोजता।
लेकिन मानव तो है वो ही जो दूजों के अश्रु पोंछता ।
अपना पथ प्रशस्त करके जो राह दूसरों को दिखलाये।
जिसमें करुणा और मैत्री है वो ही मनुष्य कहलाये ।
शंखनाद भी व्यर्थ नहीं है पर सितार भी है आवश्यक ।
जीत सुखद लगती है सबको किन्तु हार भी है आवश्यक ।

दुर्गम पथ है दूर लक्ष्य है , है अँधियारा ही अँधियारा ।
आत्मा के प्रकाश से केवल छूटेगी ये भय की कारा।
भरे हुए वैभव-पानी से बादल! तुम्हें रीतना होगा ।
दुनिया से जीतो न जीतो, खुद से तुम्हें जीतना होगा ।
जीवन में विस्तार जरूरी किन्तु सार भी है आवश्यक !
जीत सुखद लगती है सबको किन्तु हार भी है आवश्यक !”

◆ अनुराग ‘अतुल’ 

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