यह कविता प्रकृति के शोक को व्यक्त करती है जो उत्त्पन हुआ है , मनुष्य के द्वारा उसे प्रदूषित किये जाने पर -
खून बहाती नदियां
अश्रु बहाते पेड़
मर गए वो मनुष्य
जो अभी थे अधेड़ !
ईश्वर ने तो तुम्हे किया था भूषित
पर तुमने की पृथ्वी प्रदूषित !
इतनी सारी , बनके बेचारी किधर जा रही
इंसानो की भेड़
जो था उन्माद गगन
तुम्हे देख लगता भगन
कायदित जो थी पवन
किया तुमहीने उस नग्न !
कहाँ गयी वो बड़ी कुल्हाड़ी
जिससे तुमने धरती फाड़ी
जैसे किसी सुहागन को
पहना दी सफ़ेद साडी !
समय था जो बीत गया
अब तू निश्चित पछतायेगा
चल अगर तूने जीत लिया संभा
पर वक्त कहाँ से लाएगा ?
Anurag Kumar Swami
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