बिखराई किरणों के फेरे
मुदित- मुदित पंख सुनहरे
रंग पसेरी हरी वादियां
हर्षित , उज्जवल , कोमल चेहरे
चल ऐ इंसा उसी डगर पर , जिसमें न कोई डोर हो
अब चुन ले वही रास्ता जो शांत वन की ऒर हो
आज फिर प्रकृति इतराई
साथ छोड़ तुझे करे पराई
शंख , पुष्प , धुप , जाप से
किसने अब तक मुक्ति पाई
चल ऐ इंसा उसी डगर पर , जैसे आवारी भोर हो
अब चुन ले वाही रास्ता जो शांत वन की ओर हो
क्रोधित मन की कर्कश वाणी
खोह में दबके बैठा प्राणी
वस्त्र बदल ले अब तू अपना
नए रक्त से दौड़े नाड़ी
चल ऐ इंसा उसी डगर पर , जैसे सावन में मोर हो
अब चुन ले वाही रास्ता जो शांत वन की ऒर हो
Anurag Kumar Swami
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