ओ सूर्यवंशियो! सीता फिर से रावण के फंदन में है।
यानी मानवता-ज्योति पुनः भ्रष्टाचारी बंधन में है।
यदि मस्त रहे तुम यों ही तो अपना अस्तित्व मिटाओगे।
सागर तट तक तो जाओगे पर उसे लाँघ न पाओगे।
कुछ और लोग आयेगे साथ निभाने को।
पर वो केवल आयेगे वापस जाने को।
इसलिए जामवंतो जागो! जागो! अपना विवेक खोलो।
हनुमत का पौरुष जागृत हो, अंगद अतएव यही बोलो....
"जियें या अब मरें हम पर, न खाली हाथ लौटेंगे ।
अगर लौटेंगे तो लेकर सफलता साथ लौटेंगे । "
-अनुराग शुक्ला
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