विवशता
"स्वप्न में तो
एंजियो की रूपरेखा बनाकर ,
रजिस्ट्रेशन करवा कर
सपना साकार कर
संगठन तैयार कर ,
गांव- गांव , कस्बे- कस्बे
शहर - शहर जाकर ,
सोये हुए हनुमानो को
जामवंत की तरह जगाकर ,
अपने आपको को कोई देवदूत समझ गया ,
मगर सुबह उठकर
फिर उसी साइन -थीटा कॉश-थीटा में उलझ गया।
उलझा रहा दिन भर
न समय मिला तिल भर,
लेकिन फिर भी अन्याय के चलते कुल्हाड़े देखकर
बीच बीच में व्यष्टि का मोह फेककर -
कुढ़ता गया सब कुछ मिटाने के लिए ,
रात में फिर नया एंजियो चलाने के लिए। "
-अनुराग शुक्ला
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