"एक वस्तु, पर हेतु अनेकों, कैसे?, माला से पूछो।
मातृभूमि हित लाठी खाना, अपने लाला से पूछो।
कहने में तो, मात्र, अस्मिता एक शब्द ही लगती है,
पर उसका विस्तृत महत्व इक दग्धा बाला से पूछो।
शक्ति प्रेम में कितनी है? ये ऐसे जान न पाओगे,
मीराबाई ने पिया जिसे, ये तो उस हाला से पूछो।
कविता लिखना-कविता जीना,ये दोनों पृथक-पृथक कैसे,
काशी प्रसाद के गलियारे में , पड़े निराला से पूछो।"
- अनुराग शुक्ला
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