20 घंटे ·
एक पुराना प्रेमगीत
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सुधियों के जंगल सूख चले
नयनों के सर भी रिक्त हुए!
पंछी आशाओं के सारे ,
उड़ चले गगन में, मुक्त्त हुए!
मैं नहीं चाहता, तुम फिर से
लौटो इस उजड़े उपवन में !
लेकिन बस इतना बतला दो,
है कौन तुम्हारे जीवन में ?
ये माना, मेरे पास नहीं
भौतिक सुख-सुविधा के साधन।
मैं संकोची था, दे न सका
तुमको मुखरित कलरव-कानन!
थी तुम्हें चाहिये चित्रपटों के
नायक सी महिमा मण्डित !
मैं ठहरा अनगढ़ गीतकार
नेपथ्य-सुरों में शब्द ध्वनित!
मैं नहीं चाहता बँध जाओ
मेरे गीतों के बंधन में !
हाँ, केवल इतना बतला दो,
है कौन तुम्हारे जीवन में ?
जीवन की उलझन में फँसकर
जग घूम लिया है सारा पर !
बिछड़े एक बार जो हम दोनों
मिल पाये नहीं दुबारा फिर।
कह ना पाया जो कहना था,
इसमें अपराध भी मेरा है !
लेकिन मेरे सब गीतों में
हर सर्वनाम तो तेरा है।
मैं नहीं चाहता, सर्वनाम
को बदलो संज्ञा के तन में !
लेकिन बस इतना बतला दो
है कौन तुम्हारे जीवन में?
मैं भी जानूँ है कौन, भाग्य
का धनी, जिसे उपहार मिला।
कैसा लगता होगा आखिर
जिसको यह दुर्लभ प्यार मिला।
कैसे जगता है सोता है
कैसे हँसता है रोता है ?
कैसे अपने आकर्षण की
सम्मोहन शक्ति संजोता है।
मैं नहीं पूछता कौन कमी
मेरे निश्छल अपनेपन में !
बस, केवल इतना बतला दो
है कौन तुम्हारे जीवन में?
(...अनुराग 'अतुल')
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