"मेरी आशा खुली छत पर नहाने रोज आती है।
मगर कर्तव्य की माँ भी बुलाने रोज आती है।
कभी तुम भी तो आ जाओ सुलाने के लिए इक दिन
तुम्हारी याद तो मुझको जगाने रोज आती है....!"
-अनुराग शुक्ला
"मेरी आशा खुली छत पर नहाने रोज आती है।
मगर कर्तव्य की माँ भी बुलाने रोज आती है।
कभी तुम भी तो आ जाओ सुलाने के लिए इक दिन
तुम्हारी याद तो मुझको जगाने रोज आती है....!"
-अनुराग शुक्ला
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