Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शेर

 

"आजाद नहीं फौलाद था वह, पत्थर सा जिसका सीना था।
था वतन हेतु मरना जिसको, और वतन हेतु ही जीना था।
अपनी ही गोली से सीना अपना ही छलनी कर डाला....
भारत माता के हेतु बहा , सब जिसका लहू - पसीना था। "
(शत शत नमन उस युगपुरुष क्रन्तिकारी को!)

 

  • "विषम द्वंदों में जीवन को जिया अनुराग शुक्ला ने।
    विसंगति का जहर सारा पिया अनुराग शुक्ला ने।
    इसे फुटपाथ के लोगों से हमदर्दी बहुत है, क्यों ?
    जरा सा टेस्ट इसका भी लिया अनुराग शुक्ला ने।"

     

    बाढ़ क्या गाँवों में आई, बन गईं नहरें नदी।
    छंद बन्धन के बिना ज्यों बन गए हैं सब कवी।
    लोग अब हर बात को कविता समझने हैं लगे,
    (हेंह…) और केवल अपने गम को समझते हैं शायरी…"

     

    • (प्रेम और निर्धनता)
      "सही है क्या गलत है क्या बहुत सोंचे विचारे हैं।
      मगर प्रश्नों के सागर से न मिल पाए किनारे हैं।
      अजन्मे गम को खाकर -पी उदासी- ओढ ली चादर,
      इसी तरकीब से हमने हजारों दिन गुजारे हैं।"

       

    • "न रोको अब मुझे कहता हूं जो भी मुझको कहने दो!
      बची जो पीर आंसू में कलम से आज बहने दो !
      नयेपन के नशे में तुम नये पौधे लगाओ पर ,
      पुराने बरगदों का भी कहीं अस्तित्व रहने दो !"

       

    • मनुजता के धनुष पर जो प्रगति का शर चढा कर दे!
      बडा वह आदमी है जो कोई करतब बड़ा कर दे!
      हिला दे रूह जो संसद भवन तक की दीवारों की ,
      कोई कविता लिखो ऐसी कि आन्दोलन खड़ा कर दे!"

       

    • "बचाना हो गया मुश्किल , गंवाना हो गया आसां !
      हकीकत हो गयी मुश्किल , फसाना हो गया आसां !
      मेरे जेहन की बैचैनी निगाहों में उतर आयी .......
      छुपाना हो गया मुश्किल , बताना हो गया आसां !"

       

      "युगों की पीर को अपने हृदय में पालकर पूछा-
      अँधेरा था, तपस्या की ज्योति को बालकर पूछा-
      'कहो, है कट रही कैसी? तुम्हारी आजकल भैया !'
      सब्र ने दर्द की आँखों में आँखें डालकर पूछा....


      • दिल्ली का दिल फिर ना दहले, गुजरात में फिर ना दंगा हो।
        भूखा न मरे भिक्षुक कोई , निर्धन ना कोई नंगा हो।
        मुंबई मौत - घाटी न बने , गोधरा, निठारी कांड न हो ,
        गंगा जल निर्मल हो जाये, और शान से खड़ा तिरंगा हो.

       

       

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ