"संभव है सूखी कलियों को खिलने की इच्छा पुनः न हो।
भावी अरमानों से गत व्रण सिलने की इच्छा पुनः न हो।
चाहे कितना ही ज्ञानी हो लेकिन यह मेरा दावा है-
वह मनुज नहीं जिससे मिलकर मिलने की इच्छा पुनः न हो।"
"जब सभी प्रिय जा चुके थे तोड़कर।
तब रखा सम्बन्ध जिसने जोड़कर।
अब भले बर्बाद हो जा जिन्दगी!
जी सकूँगा पर न कविता छोड़कर…"
अनुराग शुक्ला
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