Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वाकपटुता आज के समय की सर्वाधिक लोकप्रिय शक्ति बन कर उभरी है

 

 

वाकपटुता आज के समय की सर्वाधिक लोकप्रिय शक्ति बन कर उभरी है । कुछ किताबें उलट-पुलट कर ली और सभी में दर्शन की अभिलाषा जाग्रत हो जाती है । फटाक से हाथ पकड़ लकीरें देख कर कटु वाणी चलने लगती है । देखा यही जा रहा है कि सबकी वृत्ति, नेता/धर्म-गुरु/उपदेशक होने की बन गई है । जरा भी अगला पिछले का होश नही है, अतुल्य वीर रस इनकी वाणी से प्रहार करने लगता है । भुला देते हैं, सर्द कड्काती रातों मे या तेज धूप और गर्म लू के थपेडों में कन्धे पर 10 किलो ग्राम की बन्दूक लिये सीमा पर जवान बैठा हैं , वो सीमा पार से आये दुश्मन को खदेड़ सकता है । किंतु , सीमा के अंदर बैठे उसके प्यारे देशवासियों की रोज़ की नई करतूत उसे शर्मसार करती रहती हैं ।
उसकी इच्छा शक्ति भी बैठे- बैठे शायद कमजोर होती जाती है ।
जब भी अखबार उठाओ, एक किस्सा दबता नही कि नये ज़ख्म से सिसकियाँ उसे देखने को मिलती हैं , रोजमर्रा में ही नये घाव रिस रहे हैं । वो तो देश का सच्चा सपूत ड्टा है मैदान में किंतु देश के हर क्षेत्र में चाहे राजनीति हो , अर्थ-जगत हो , या सामाजिक क्षेत्र सभी जगह लालची, खुदगर्ज, मक्कार भेडियों की नस्लें नये नये रुप में उसे देखने को मिलती हैं ।
3,6,18 हो या 45 वर्ष की ..... हर उम्र की कमजोर नारियों को बस कुपोषित सामाजिकता शिकार बना रही है ।
राष्ट्र उत्थान के लिये एन जी ओ बने है , जो बड़े - बड़े मिशन लिये हैं साक्षरता, नशा उन्मूलन , वन्य जीव संरक्षण , आदिवासी समाज कल्याण .... और भी न जाने कितने ! पर जो बस लगज़री गाडियों से भ्रमण कर फाईलों को ही भर रहे है । जमीनी कार्यकर्ता अभी भी भटक रहे है कही से फंड मिल जाये और नेताओं अधिकारियों के चमचों को ही नई योजनायें मिलती हैं और मिल बाँट हर क्षेत्र में बढ -चढ़ के बस ज़हर घोल रही है ।
खुब हुआ तो एक दुसरे पे उँगलियाँ ही उठी है । भ्रष्टाचार ने डायनासॉर का रुप ले लिया है । चपरासी से आलाअधिकारी तक मिली भगत होती है और आम जनता तक बस पंजीरी बाँटी जा रही है ।
वो भी इतने में ही खुश हो जाते , क्यूँकि वृति तो "भागते भूत की लंगोटी मिली " वाली उनकी भी हो गयी है ।
क्यूँ खमाखाँ ये कह मैं भी पंगा लूँ .. !
मेरे मालिक तुझसे ही कहता हूँ ....
" मेरे खुदा क्या तेरी खुदाई है
हर तरफ से उठ रही दुहाई है
क़यामत की सी शक़्ल इन्होने दिखाई है
किसमें दम जो खड़ा हो सके इनके सामने
इन्होने रीढ की हड्डी तोड़ उसे चारपाई पकडाई है
जीते जी ज़िन्दगियाँ जहन्नुम इन्होने बनाई है
मेरे मालिक दुहाई है ..! दुहाई है ! दुहाई है !

 



अनुराग त्रिवेदी ..... एहसास

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