भरोसा जब टूट जाता है फिर ना दोबारा बन पाता है
साधू बन तोड़े मर्यादा, रावण युगों तक जिए जाता है
अनगित हैं चेहरे उसके, असंख्य हाथ भी वो पाता है
मरे न कभी किसी तौर भी वो, अमरत्व ले कर, जैसे आता है !
फिर खड़ा, मंच पर दिखे, एक गया, दूजा आ जाता है
दर्शन, अध्यात्म की बात करे, फिर देखो, कैसे मुँह छुपाता है !
आसक्त हैं अंधत्व में लोग, थाली लेकर वो पूजा जाता है
खड़ा है वो झंडा पकड़ कर, लालची समाज को बेचे जाता है
न्याय-अन्याय की बातें चलतीं, फिर खबर को दबाया जाता है
संविधान भी क्यूँ है अँधा ? कुछ नियम क्यूँ नहीं वो बनाता है !
करोड़ों के मंदिर बना वो बैठे, झुग्गी को आश्रम क्यूँ नहीं बनाता है
'वैष्णव जन ते जेने कहिये, पीर पराई जाने रे !' सच है, बापू ! पर तेरा नाम कलंकित किया जाता है
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