जिधर देखो उधर चमचा बनने की होड़ है ,
कभी नेता/अधिकारी के जूते पैबंद का जोड़ है ,
उनके थूकते ही शायद जेब आगे कर दें,
नही किसी बात की शर्म ,ना रास्तें में कोई मोड़ है,
सीधा सहज दिखता वो रास्ता, यहीं लगी दौड़ है ।
घर से निकलते बेबात तकल्लुफ़ न्योछावर करते हैं,
जिससे मिलें उनकी बेतुकी बात पे वाह वाह करते हैं ,
घर के बुज़ुर्ग को लगी टीस से दिये झिंझोड़ हैं ,
नही वक्त उनके पास एक के पीछे , एक की दौड़ है ।
जिधर देखो चमचा बनने की लगी होड़ है ।
***अरे .. साहब आ गये सुनते ही बस......
लगी जिधर उधर जबरदस्त दौड़ है ।
सबके लब पे बेबात तबस्सुम समेटे जाते हैं ,
साहब – शायद के छींकने के लिये मुँह बनाये...
कोई रुमाल...!!! , कोई विक्स की गोली...!!
कोई झण्डू बाम लिये कतारबद्ध खड़े हो जाते हैं ।
कसम खुदा की , इस धर्मव्रत निष्ठा पे यमराज भी रीझे हैं
और चन्द्रगुप्त को तीखे नयन घूरे जाते हैं....
चन्द्रगुप्त : " प्रभु ! क्यूँ घोर अपराध कर रहे हो ..?
ये कला सिर्फ मनुष्य के पास है ....
क्यूँ मुझसे आशा किये जाते हो ..?
देखो ना उधर प्लीज़ :
साहब/नेता मेला कर दे वो प्रसाद बन जाता है ,
इधर सेवा देने मे सपरिवार गुण गाये जाता है ,
सगे भाई की तकलीफ पर नज़र न पड़े,
साहब के दूsssssssर .. के मौसेरे/फुफेरे भाई , की बीमारी पर चमचा परिवार गमगीन हो जाता है ।
सच में इस कदर महारत हासिल है कि , भेड़िये भी अब इंसान से ट्यूशन लेने आते है ।
शर्म ..हया ! की बात छोड़ो ,
चमचागिरी का धर्मशास्त्र बच्ची/बच्चे को सिखाते हैं
बच्ची को कहते नर फ़ैकल्टी पर मादा आकर्षण से हमेशा अभिवादन करना....
लड़के से कहा : कह देना , बाप को कैंसर है , माँ कपड़े सीती है.....
मादा फ़ैकल्टी के वात्सल्य पे वार करना ..
हाँ रस गुणकारी चमचा पद्धति का कारगर होगा ..
तू प्रेक्टिकल में गधी/गधा रहे ,
नंबर देते वक्त रस प्रभार काम करेगा बस !
प्रभु , चमचागिरी का गज़ब फ़ैशन बन जाता है ..
काम, धंधा, नौकरी , शिक्षा......
प्रभु चमचों का बोलबाला है ... बस चमचों का बोल बाला है ...।"
.......अनुराग त्रिवेदी
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