Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हिन्दी का टायटेनिक डूबने से बचे !

 

वो जाने किन स्याह रातों का जिक्र करता था ?
सभी उसी की बोली धीरे-धीरे देखो बोलते हैं !


आज कोई पागल कहे, कोई दीवाना कहता,
सभी उसके नक़्शे-कदम पर चल पड़ते हैं ।


किसी ने कहा- तबीयत से पत्थर उछालो !
ज़माना हुआ, पत्थर लिए घर से निकलते हैं ।


अब माहौल में बेहिसाब नमी आई है देखो !
भँवरे, कलियाँ, पत्ती की ज़ुबां सब बोलते हैं ।


क्या चमन गुलज़ार हुआ ? या कुछ और ही !
हर गली में चच्चा के पैगाम रस घोलते हैं ।


बस ऐसे ही हिन्दी का टायटेनिक डूबने से बचे !
बच्चा-बच्चा घर में फिर से हिन्दी बोलते हैं ।


महबूब के साथ माँ के शुमार की तहज़ीब दिलाई,
वाह ! बस पे नहीं रुके वो फलसफे तोलते हैं ।


दोहा और ग़ज़ल कहना सिखाया नादान को,
परिंदे भी अब देखो हौसले की बातें बोलते हैं !


दूर नहीं मंजिल जिस पे चले हैं सभी यहाँ !
सितारे उनके कदमो को चूमने डोलते हैं ।

 

 

: अनुराग त्रिवेदी- एहसास

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