ह्रदय जब व्याकुल होता है, आकुलता का नभ चुनता है
पाखी से कई अक्षरों को, छन्द-अलंकार से तब बुनता है
जब कुंठा के बादल घिर आयें, खुद ही खुद में घुनता है
मन यदि पूरक हो जाये, पृथकता के गीत भी सुनता है
प्रेम का दर्शन एक में जानो... पानी कब कट सकता है !
बहाव है ये भावों का, कविताओं में आ-आ कर जुड़ता है
हो जाती बातें कई, कभी ह्रदय मस्तिष्क की भी सुनता है
अनवरत प्रक्रिया से गुज़र कर, कवि कोई गीत रचता है
परिस्थितियों से विवश हो मानसिक संतुलन खो बैठता है
कल आज का होश खोकर, काल के कुचक्र में जा फँसता है
: अनुराग त्रिवेदी - एहसास
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