द्वारा : अनुरग त्रिवेदी - एहसास
========================
पता नहीं !
कैसा ये युग आया है ?
डूब गयी देवभूमि ही !
पहली बारिश ने कहर बरपाया है ।
अभी वही चक्र ....
समय सुदर्शन का, घूम कर आया है ।
कितने बह गए ?
कितने ढह गए ?
लाशों का गणित गलत ही बताया है ।
कमाने वाला गया ....
खाने वाला देखो, सड़क पर आया है !
आते ही नोचती आँखों ने उसे ....
कई तरह से फिर नोच-नोच के खाया है ।
पता नहीं !
सुना नहीं !
कैसा ये युग आया है ?
उसके होते सुरक्षित हूँ मैं !
भक्त भी सशंकित वापस आया है ।
आस्थाओं पर व्यवस्थाओं पर,
प्रश्न उठे, पर क्यूँ कर ऐसा हो पाया है ?
पेड़ काट दीवारें उठीं,
चट्टान काट, घर-दुकान को बनवाया है
तीर्थ यात्री भटक रहे,
ईश्वर लापता की खबर ही बस दे पाया है
सोता छोड़ गई जो बच्चे को,
ममता को रोते-बिलखते हमने पाया है ।
माँ ...! गँगा .. बता ना ?
किस बात पर ये क्रोध उभर के आया है ?
तू शीतल, तू पावन है
पर क्यूँ बच्चे को जलसमाधि दिलवाया है ?
किससे पूछूँ कौन है पापी ?
गर्जन तुझसे भय अर्जित हो पाया है ।
क्या लिखें श्रंगार भाव पर ..?
कैसे रुदन में कोई मेघ मल्हार गा पाया है !
हटो ..छोड़ो जाने दो ...!
मुक्ति मार्ग है, ना मरते तो,
मरने को बम इंसान ने भी बनवाया है
इधर नही तो उधर जाते,
जाते को भला कौन रोक पाया है ?
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY